आद सक्त सरसत आदेस,

सुप्रसन गुणपति गगां अग्रेसं।

आपो मूझ असर उपदेस,

मो मतिसार जपां महेसं॥

क्रपा निधान स्याम करणाकर,

सेध प्रजक रचे इत सुंदर।

आपे पोढियौ प्रागवड़ ऊपर,

मुरपुर कर जळ सई मनोहर॥

पार ब्रह्म लीधी पर पूरण,

निंद्रा किंताई काळ नारायण।

अछ्या थई जागिवा आपण,

विस्व त्रिगुण माया विस्तारण॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : आईदान गाडण ,
  • संपादक : डॉ. सौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर
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