अकलि तहाँ बे अकलि, सुमति तहाँ कुमति कमाई।

बुद्धि तहाँ करि कुबुधि, पूरी तहाँ ओछी आई॥

साहिब सौं ल्यौ टूटि, जाइ औरा दिशि लागी।

सुधि बुधि का बल मिट्या, बात परचै की भागी॥

सुरति टूटि चंहु दिशि गई, ज्यों जाणौ त्यों जोड़िये।

अब बखना का बल नहीं, गुर दादू गई बहोड़िये॥

स्रोत
  • पोथी : बखना जी की बाणी ,
  • सिरजक : बखना ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : श्री लक्ष्मीराम ट्रस्ट, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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