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मीरां रो राजस्थानी अर्थ

मीरां

  • शब्दभेद : सं.स्त्री.

शब्दार्थ

  • मेड़ता के शासक एव राठौड़ों की मेड़तिया शाखा के प्रवर्त्तक राव दूदाजी के पुव रत्नसिंह की पुत्री जौ मेवाड़ के राणां सांगा के पुत्र भोजराज को ब्याही गई थी। इसका बचपन का नाम पेमल था। यह ईश्वर की अनन्य भक्त एवं कवियित्री थी। वि.वि.-- जन्म--मीरांबाई का जन्म मेड़ता रियासत के कुड़ली गांव में संवत 1561 के श्रावण मास में हुआ। बाल्यकाल व विवाह--मीरां के दादा रावदूदाजी ईश्वर के परम भक्त थे। उन्होंने मेड़ता में चतुर्भुज जी का एक विशाल मन्दिर बनावाया जो अब भी विद्यमान है। इस प्रकार दूदाजी का समस्त परिवार भक्ति भावनाओं से ओत--प्रोत था। मीरां की माता के विषय में ऐसा माना जाता है। कि उनका स्वर्गवास मीरां की अत्यन्त अल्पावस्था में हो गया था इसलिये मीरां को उसके दादा के पास कुड़ली से मेड़ता लाकर रक्खा गया। अत: एक तौ भक्तिभाव पूर्ण वातावरण में रहने तथा अपने पूर्व जन्म के प्रारब्धों के कारण उसमें ईश्वर भक्ति का प्रादुर्भाव बाल्यकाल से ही हो गया। इस सम्बन्ध में कुछ अन्य किवंदन्तियां भी प्रचलित हैं। मीरां का विवाह मेवाड़ के राणां सांगा के पुत्र भोजराज से संवत 1573 में हुआ। रामदांनजी लालस कुत भीमप्रकाश में इस बात का उल्लेख है-- भोजराज जेठीं अभंग, कंवर पदे मृत कीध। मेड़तणी मीरां महल, प्रमी भगत प्रसीध। कर्नल जेम्स टॉड ने मीरां का पति राणां कुम्भा को माना है, परन्तु इतिहास से प्रमाणित होता है कि राणां कुम्भा व राव रिणमल, जो मीरां के दादा के भी दादा थे, समकालीन थे। इसलिये राणां कुम्भा मीरां के पति नहीं हो सकते। मीरां के पति भोजराज की राणां सांग के जीवनकाल में ही मृत्यु हो गई। इस असामयिक वैध्व्य से मीरां को इस संसार से व लौकिक जीवन से और अधिक विरक्ति हो गईऔर श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भावना अधिक प्रबल हो गई। पति का वियोग ईश्वर के प्रति विरह में परिणित हो गया। मीरां व पेमल--मीरां का जन्म का नाम पेमल था। इसका प्रमाण ब्रह्मदास कृत भगतमाळ मैं मिलता है:-- न हुवौ घट नास पियौ विस 'पेमल'। जास घणी बळ तास जरै। ग्रहियां व्रिद लाज उबारण ग्रायह, काज इसा महाराज करै। परन्तु इसका मीरां नाम कब, कैसे और क्यों पड़ा? इस सम्बन्ध में कोई पुष्ट एवं प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलता। पुरोहित श्री हरिनारायणजी विद्य भूषण व कतिपय अन्य विद्वानों का मत है कि मीरां के जन्म से पूर्व उसकी मां नै अजमेर के मीरांसा की मिन्नत की जिसके फलस्वरूप इसका जन्म हुआ और नाम भी मीरां रखा गया। अन्य मत से--मीरां शब्द का प्रयोग उच्चकुलीन एवं सज्जान पुरुषों के लिये किया जाता है। अत: उच्च राजकुल में जन्म लेने, ईश्वर के प्रति भावना, सज्जानता तथा मानवता के अच्छे गुणों के कारण इसका मीरां नाम पड़ गया। कर्नल जेम्सटॉड ने अपनी पुस्तक 'पश्चिमी भारत की यात्रा' में आबू के पहाड़ों का वर्णन करते समय 'मीरां' नाम किसी पहाड़ी वी का उल्लेख किया है। अत: मीरां नामक दि कोई पार्वती देवी हो तब तो मीर का नामकरण उक्त देवी के नाम के आधा पर माना जाना संभव हो सकता है। अन्यथा इसक लिये अनुसंधान अपेक्षित है। तीर्थयात्रा:--संवत 1595 में जोधपु के राव मालदेव ने मेड़ता पर अपना अधिकार कर लया तब मीरां अपने ताऊ वीरमदेवजी के साथ मीर्थयात्रा के लिये चली ई और वहीं (द्वारका में) उनका सं.1603 में देहावसान हुआ
  • स्वामी मालिक