राजस्थानी सबदकोस

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ललित रो राजस्थानी अर्थ

ललित

  • शब्दभेद : सं.पु.

शब्दार्थ

  • श्रृंगार-रस में कामिक हाव भाव या अंगचेष्टा जिसमें सुकुमारता के साथ भौं, आंख, हाथ, पैर आदि अंग हिलाये जाते हैं
  • एक विषम वर्ण वृत्त जिसके पहले चरण में सगण, जगण, सगण व लघु, दूसरे में नगण, सगण, जगण व गुरु तीसरे में नगण, नगण, सगण और चौथे में सगण, जगण, सगण जगण होता है
  • संगीत में षाडव जाति का एक राग जौ भैरव राग का पुत्र कहा गया है और जिसमें निषाद स्वर नहीं लगता तथा धैवत और गांधार के अतिरिक्त और सब स्वर कोमल लगते हैं