राजस्थानी सबदकोस

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दांत रो राजस्थानी अर्थ

दांत

  • शब्दभेद : सं.पु.

शब्दार्थ

  • जीवों के मुँह, तालू, गले और पेट में अंकुर के रूप में निकलने वाली कठोर हड्डी जो आहार चबाने, तोड़ने तथा आक्रमण करने, जमीन खोदने इत्यादि के काम आती है, दंत, दशन, रदन। वि.वि.--मनुष्य तथा दूध पिलाने वाले जीवों में दांत, दाढ़, मुँह में जबड़े के मांस में लगे रहते हैं। मछलियों और सरिसृपों में दांत केवल जबड़ों में ही नहीं बल्कि तालू में भी होते हैं। पक्षियो के दांत मसूड़ों के गड्ढ़ों में जमे रहते हैं, उनके दांत का काम चोंच से निकलता है। बिना रीढ की हड्डी वाले क्षुद्र जीवों के दांतों की बनावट और स्थिति में परस्पर विभिन्नता होती है। केंकड़ा, झिंगवा आदि के पेट या अंतड़ी में महीन-महीन दांत या दानेदार हड्डियां होती हैं। दूध पिलाने वाले जीवों के दो बार दांत आते हैं। बचपन के दूध के दांत 9 से 12 वर्ष की अवस्था के बीच झड़ जाते हैं और फिर नये दांत आते हैं। मनुष्य के बच्चों में दूध के दांतों की संख्या बीस होती है। सामने के ऊपर और नीचे के चार-चार दांत चौका या राजदंत वर्ग कहलाते हैं। चौका के बाद ऊपर और नीचे के दो-दो नुकीले दांतों को राजस्थानी में कूंठा, कांणेठा या खूंटा कहते हैं जिन्हें हिन्दी में शूल दंत या कुकुर दंत कहते हैं। इसके बाद ऊपर और नीचे दाढ़ें शुरू हो जाती हैं। ये चौड़ी और चौकोर होती हैं, इन्हें हिन्दी में चौभड़ कहते हैं। 21 या 22 वर्ष की अवस्था में जब अंतिम दाढ़ या अकल दाढ़ निकलती है तो 32 दांत पूरे हो जाते हैं। पर्या.--खादन, डसण, दंत, दंस, दसण, दुज, मुख-दीपण, रद, रदन, वांणीमंड