Anjas

वील्होजी

  • 1532-1616
  • Marwar

'विश्नोई संप्रदाय' रा प्रमुख संत कवि। जांभोजी री शिक्षावां रो प्रचार-प्रसार करता थका जोधपुर रे रामड़ावास गाँव में समाधि ली।

वील्होजी रौ परिचय

जन्म: रेवाड़ी,भारत

निधन: रामड़ावास,भारत

वील्होजी रौ जलम सन् 1532 ई. में हरियाणा प्रांत रै रेवाड़ी में एक खाती (सुथार) परिवार में हुयौ। आप रै पिताजी रौ नांव श्रीचन्द (परसराम) अर माताजी  रौ नांव आनन्दा बाई हो। आप री दोनूं आंख्या री जोति(नजर) बाळपणै में ही चेचक बीमारी सूं गयी परी। एक'र गुजरात रै वेदांती साधुओं री एक टोळी आप रै गांव आई। वील्होजी रै माता-पिता आपरै बेटे ने उण वेदांती साधुआं नै सौंप दिया। वेदान्तियां रै सागै रैवण रै कारण आप नै 'विल्हपूरी' री उपाधि मिळी।
आप रै पाटवी सिस्य महात्मा सुरजनदास जी पूनिया आपरै गुरु नें विठ्ठलदास अर विठ्ठलराय रै नाम सूं तो जांभाणी संत गोविंदराम जी आप ने 'वील्हाजी' अर साहबराम जी राहड़ आपरै लोक प्रसिद्ध ग्रंथ 'जम्भ सार' में आप ने 'विल्हदेव' कैय'र संबोधित करिया है। विसनोई पंथ रै संत साहित्य में विल्हो, बीठल, विल्हेसर, वील, वीलो, वीहल, वीलहेश्चर जैडा कई नांवां सूं आप रौ जिक्र हुयौ है।
वील्होजी वेदान्तियां रै सागै घूमतां-घूमतां एक बार बीकानेर जिले रै हिमतसर गांव पहुंचिया। उठै प्रभात पौहर रा बाहर घूमण निकळिया तो कांनां में कोई सबदां री धुन सुणाई पड़ी। एक औरत ने पूछियौ जद पतो चालियौ कि अठै पास में ही तालवा गांव है जठै जाम्भोजी रौ धाम है, उठै सुबै-सुबै होम (हवन) होया करै अर साखी, सबदां रौ पाठ भी संत महात्मा किया करै। आ ध्वनि जांभोजी रै सबदां री धुन है।
वील्होजी आपरै  वेदान्ती संत-महात्मावां री टोळी रा बाकी लोगां ने उठै ही छोड़िया अर सबदां री धुन सुणतां-सुणतां जाम्भोजी रै धाम मुकाम (तालवा)पहुंच गिया। आ घटना जाम्भोजी (सन् 1451-1536 ई.) रै अन्तर्ध्यान हौवण रै आठ बरस बाद सन् 1544 ई. री है। उण समै वील्होजी मुकाम जांभोजी रै ऐहिक धाम में बैठ'र 'गुरु तारि बाबा जिवड़ो लोभी लब्धी खूनी खून किया बोहतेरा।' नाम री एक आत्मनिवेदनात्मक साखी रै माध्यम सूं गुरु जाम्भोजी सूं अरदास करी। कह्यौ जावै कै इण साखी रै गावतां ही वील्होजी री दोनूं आंख्यां री दीठ (ज्योति) पाछी लौट आई। एड़ी मानता है कै ज्ञान रूपी चक्षु खुल गिया। उठै विराज्योड़ा संत भगत औ चमत्कार दैखियौ तो वां नै जाम्भोजी री करियौड़ी भविष्यवाणी याद आय गी अर उण भविष्यवाणी में जाम्भोजी जकी जकी विसेसतावां बताई वै सगळी वील्होजी में देखण नै मिळी। उणी बगत जाम्भोजी रै सिस्य नाथोजी वील्होजी ने पाहल (दीक्षा) देय'र विसनोई  पंथ में दीक्षित कर लिया। उण समै वील्होजी री उमर बारह बरस ही।
गुरु जांभोजी रै वैकुंठवास रै बाद अर वील्होजी रै इण पंथ में दीक्षित होवण तक विसनोई पंथ री दशा घणी डांवाडोळ ही। लोगां री पंथ सूं रुचि कम हौवण लागगी, कई लोग पंथ छोड भी दियौ। ऐड़ी अबखी समै में वील्होजी विसनोई पंथ में नव सुधार करण रो बीड़ो उठायो अर आपरी खैचळ सार्थक रैयी।
वील्होजी धरम रै प्रचार प्रसार अर समाज नै सही दिसा बतावण सारू संवत् 1648 में जाभोळाव तीरथ माथै चैत अमावस्या रौ 'चैती मेळौ' अर भादवै री पून्यूं नै माधोजी गोदारा रै सहयोग सूं 'माधा मेळौ' शुरू करायौ। इणी भांत वील्होजी मुकाम तीरथ माथै लागण वाळौ आसोज अमावस्या रौ मेळौ भी शुरु करायौ।
समाज सुधार रा काज करतां थकां वील्होजी ओ भी महसूस कियौ कि लोग डर बिना सही रास्ते नीं आवेला। इण खातर वै जोधपुर महाराजा सूरसिंह जी सूं भेटं करी। उण समै महाराजा जी री इंछा रै मुजब वील्होजी दरबार में बाजरै रौ सिट्टौ, काकड़ी अर मतीरौ वां नै उपलब्ध करायौ। इण सूं राजा जी घणा राजी होय नै वील्होजी नें कीं मागण रौ कैयौ। वील्होजी रे राजभय खातर अर्ज करी अर राजा वां नै खूंटे-कोरड़े रौ अधिकार दे दियौ। जिण सूं वील्होजी पंथ री स्थिति सुधारणै में सफल हुया। इणी भांत वील्होजी नें बीकानेर अर जैसलमेर रा राजा सूं भी समाज सुधारण री दिसा में सहायता मिळी। वील्होजी घूमण री प्रवृत्ति रा संत महात्मा हा। जगां-जगां भ्रमण करता थकां लोगां सूं जीव रक्षा, पेड़ रक्षा अर अमर रखावै थाट धरम रौ सख्तीं सूं पालण करायौ। उणां री प्रेरणा सूं ही धरम अर पेड़ां री रक्षा खातिर कई बलिदान भी हुया।।
वील्होजी समाज अर पंथ सुधार रै साथै साहित्य सिरजण भी लगौलग करता रैया। आपरौ रचना संसार भी अणूतौ लूंठौ है। प्रमुख काव्य रचनावां इण भांत है-

1.कथा धड़ाबंध
2.कथा औतारपात
3.कथा गुगलिये की, 
4.कथा पूल्है जी की, 
5.कथा दूणपुर की, 
6.कथा जैसलमेर की, 
7.कथा झोरड़ां की, 
8. कवत परसंग का, 
9. कथा ग्यानचरी,
10. सच अखरी विगतावली, 11.साखियां, 
12.हरजस,
13. विसन छत्तीसी, 
14.छपइया, 
15.दूहा मंझ अखरा अवतार का, 16. फुटकल पद

वील्होजी री आखिरी रचना 'उमाहो' ही जो कै एक गैय रचना है अर धनासी राग में है।
उणां रै काव्य रौ मूल स्वर लोक-कल्याण री भावना है। वील्होजी मोक्ष प्राप्त करणौ मिनख रौ चरम लक्ष्य स्वीकार कियौ है। मोक्ष री प्राप्ति खातिर वै विष्णु नाम रौ सुमरण अर सुकृत करण माथै जोर दैवता। सुकृत रै सागै-सागै वील्होजी लोगां ने कळजुग में पाखंडां सूं  हमेसा अळगा रैवण री बात भी कैवतां हा। उणां रै काव्य में विसनोई पंथ अर मरुप्रदेश रै सामाजिक अर सांस्कृतिक जीवण रौ बखाण विस्तार सूं हुयौ है। संतकवि री काव्य रचनावां में सगळी जगां मरुभाषा काम में लियौड़ी है। बोलचाल री भाषा रै शुद्ध प्रयोग करणै री दिसा में वील्होजी री अनुपम देन है। इण आधार माथै वील्होजी रौ काव्य न सिर्फ जाम्भाणी साहित्य में अपितु राजस्थानी साहित्य में भी घणौ महताऊ है।
वील्होजी एक सच्चा संत, योगी अर कर्मठ समाज सुधारक रै साथ ही राजस्थानी भासा अर साहित्य नै समृद्ध करण वाळा कवि भी हा। वां रौ आखौ जीवन समाज सुधार अर साहित्य सिरजण में ही बीतियौ।
वील्होजी आपरै लौकिक जीवन रौ छेकड़लो काळ रामड़ावास में ही गुजारियौ। जीवण रौ अंत नैड़ो देख वै संवत् 1673 में आपरै पाटवी सिस्य सुरजनदास जी पूनिया ने आपरी गद्दी सौंप नै सम्वत् 1673 री चैत्र सुदि ईग्यारस रविवार रै दिन रामड़ावास गांव में गोलोकधाम सिधार गिया। उठै ही वां री समाधि है। उण दिन सूं रामड़ावास 'वील्होजी रौ धाम' नाम सूं जाणीजै।