Anjas

स्वामी देवादास जी

  • 1754-1787
  • Mewar

रामस्नेही संत संप्रदाय रै महात्मा रामचरण जी रा प्रमुख शिष्य। रचना संसार घणो लूंठो, 'अणभै बाणी' नाम सूं संकलित-प्रकाशित।

स्वामी देवादास जी रौ परिचय

जन्म: बीगोद,भारत

देवा दास जी रौ जलम भीलवाड़ा जिले रै बीगोद गांव रै एक संपन्न माहेश्वरी परिवार मांय हुयौ। राजस्थान मांय निरगुण ब्रह्म री भगति अर पूजा करण वाळा पंथा मांय रामस्नेही संप्रदाय रौ नाम सिरमौर है। रामस्नेही संप्रदाय रै महात्मा रामचरण जी रौ नांव जग चावौ है। रामचरण जी एक समै बीगोद, भीलवाड़ा पधारिया। वां रै अलौकिक व्यक्तित्वआध्यात्मिक ग्यान रै तेज, पळकती बाणी अर  ग्यान-भगति-वैराग्य रस सूं भीग्योड़ा विचारां 14 बरस रा बाळक देवादासजी घणा प्रभावित हुया।  माहेश्वरी समाज रै लढ्ढा गोत मांय जलम्या बालक देवादास जी रौ राम भगति सूं प्रेम घरवाळा रै लाख टका समझावण रै पछै भी नहीं डिग्यौ अर वै सेवट रामस्नेही संप्रदाय मांय दीक्षित हुय गिया।

संत देवादास जी रै ग्यानभगति रै खैतर मांय प्राकट्य रौ बखाण रामस्नेही संतां री बाणियां मांय इंण भांत मिळै-

 

 

 

देस ढूंढाड़ मांहि परगणूं बहतरि जानूं।

कसबा मधि इक गाम नांव जो गूढौ मानूं।

तहाँ प्रगट भयै आय जंन जौ देवादासा।

लियां ज्ञान अर भगति विराग धरि बहुत उदासा।

जगत डरत रहे दूरि निकटि नहीं आवै कोई।

ब्रह्मदेस की बात सबद कहै यहाँ बताई।

समत अठारा पुरि उपरिहु अठाइस बिलाए।

गिरा उचारी तबै राम जब हिरदै आए।

रामचरण गुरदेव तास का सिर पर राजै।

रामत दिसा ज च्यारि सुखी होइ तहाँ विराजै।

खानाजाद गुलाम है हरिराम तुम दास जूं।

भव बूडत मोहि राखियों सतगुरु देवादास जूं

 

 

 

इण रौ अर्थ इण भांत बतायो जावै कै ढूंढाड़ खैतर रै बहतर परगना रै गुढा गांव मांय देवादासजी नें ब्रहम ज्ञान री अनुभूति हुई।

संत देवादासजी रौ रचना संसार भी दूजा रामस्नेही संतां री दांय लूंठौ है जिको अणभै बाणी नाम सूं संकलित-प्रकाशित है।  इण रै अलावा भी संत देवादासजी री छोटी-मोटी 16 रचनावां रौ जिक्र भी साहित्य रा समालोचना परक ग्रंथां मांय हुयौ है। जिणां मांय गुरु री महिमासत्संग री महिमा,भगति री महिमाराम-गुरु अर संतां री वंदनामुगतिराम नाम सुमरण रौ फळराशियां रा गुण-दोसतिथियां रा विचारजीव रा दुःखराम नाम सूं मुगतिकायर-सूर रा लखणकामणिमाया जैड़ा कई  विसयां नै आधार बणाय'र सांवठौ सिरजण करिज्यौ है। इण सिरजण सूं राजस्थान रै लोगां रै जीवन नें सन्मार्ग दिखावण रै कारज रै साथै राजस्थानी साहित्य नें भी समरिध करिज्यौ है।

संत देवादासजी विरक्त प्रवृत्ति रा संत महात्मा हा। जिणां रौ किण ई खास जगा विसेस सूं कोई लगाव नहीं हो। वे हमेसां घूमता-फिरता रैवता अर राम नाम रौ उपदेस दैवतां। जिण ठौड़ दिन छिप्यौ उणी गांव मांय रातवासौ लेय'र सुबै वौ ही राम नाम रौ उपदेस।

संत देवदास जी रै लौकिक संसार मांय बितायोड़ै जीवण रौ बखाण रामस्नेही संत महात्मा जगन्नाथ दास जी इंण भांत कियौ है-

 

 

 

रामचरण गुरदेव तास के सिख बहु भारी।

देवादास इक नाम जासकी वृत्ति करारी।

भजन करै भरपूरि आन चरचा न सुहावै।

गुरु पद में गलतान और कछु दाइ न आवै।

सकल वासना नाम आस तन की पुनि नांही।

बिचरै जग के मांहि कंवल ज्यूं जल के मांही॥

 

 

 

 

संत देवादासजी रै पारलौकगमन रै पछै उणां री पांचभौतिक देह नै जोधपुर रै सावा गांव मांय समाधि दिरिजी। उणी पवित्र जगै माथै छतरी बणायोड़ी है जिण माथै इण भांत लेख छप्यौड़ौ है-

 

 

 

स्वामीजी श्री संतदास जिनके किरपाराम।

रामचरण ताकी सरण सरया मनोरथ काम।

रामचरण महाराज के सिष भयै देवादास।

अठारा सौ चमालीस में कियौ ब्रह्म में वास।

पौस सुदि 12, रविवार प्रातः समय दैह त्यागी॥