Anjas

सुरजनदास पूनिया

  • 1583-1691
  • Marwar

'विश्नोई संप्रदाय' रा आगली पांत रा संत कवि। आपरी गहरी भगती साधना अर शास्त्र ज्ञान सूं राजस्थानी साहित्य ने हरियल करियो। रचनावां में मध्यकाल री ठेठ राजस्थानी भाषा री बानगी।

सुरजनदास पूनिया रौ परिचय

जन्म: भींयासर,भारत

निधन: जाम्बा गाँव,भारत

विक्रम री सत्रहवीं सताबदी रै उतरार्द्ध अर अठारहवीं सदी रै राजस्थानी संत कवियां में महात्मा सुरजनदास पूनिया रौ नांव घणै आदर सूं लियो जावै।
मरू भासा रा हिमायती संत सुरजनजी धोरां री धरती अर ऊंडै पाणी री जमीन सूं जुड़यौडां हा। वै अपने आप में एक एड़ा सबदकोस हा जिका आपरै ऊंडै शास्त्र ग्यान, गहरी भगती साधना अर अणूतै लोक अनुभव रौ इमरत मायड़ भासा मे बरसाय'र राजस्थानी भासा अर साहित्य नै पोखित करियो। सौलहवीं- सत्रहवीं सदी री ठेठ राजस्थानी भासा रो सबळ नमूनौ है सुरजनजी रौ रचनां संसार।
संत सुरजन दास जी रौ जलम जोधपुर जिले री फलोदी तहसील रै भींयासर गांव में विक्रम  संवत् 1640 रै लगैटगै हुयौ। वांरै बालपणै में ही वैराग्य जागियो अर वै संत वील्होजी नै आपरा गुरु बणाय'र साधु रूप धारण कर लियौ। वां री भगवान विष्णु अर गुरु जांभोजी रै प्रति प्रगाढ़ आस्था ही। महात्मा वील्होजी रै सात सिस्यां में सिरै अर विसनोई पंथ में घणा विख्यात संत सुरजनदास पूनियां री संतत्व जीवनचर्या देख'र गुरु वील्हो जी उणां नै संवत् 1673 में विश्नोई पंथ री रामड़ावास साथरी रा सिरैमान मंहत थरप दिया। वील्होजी रै गोलोकधाम गिया पछै विसनोई पंथ री ज़िम्मेदारी सुरजनजी इज संभाळी। लंबे समय ताईं पंथ रौ मारग दरसण करण वाळा वितरागी संत सुरजनदास पूनियां रौ स्वर्गवास संवत् 1748 में जांभोलाव में हुयौ। पण वां री पंचभौतिक देह वां रै पैतृक गांव भींयासर में पूनियां री गुवाड़ में समाधिस्थ करिजी। उण हीज जगै आज सुरजनजी री पावन स्मृति में एक छतरी बण्यौड़ी है। उम ठौड़ हरसाल मेळौ भरियौ जावै। वां आपरै लौकिक जीवन में कोई सिस्य नी बणायौ। विसनोई पंथ रै संतां री बाकी परम्परा में वां रै गुरु भाई अर दुजोड़ा संतां री सिस्य परम्परा वाळा है। एक साचा योगी अर बिना डरण वाळा, सरल सुभाव रा एंकातप्रिय संत सुरजनजी आपरौ घणकरो समै रामड़ावास में बितायो। सुरजन छान-नाडी रै नांव सूं चावी आ जगै रामड़ावास साथरी अर वील्होजी री समाधि सूं तीन किलोमीटर अळगी है। धरम-नेम रा सौलह आनां खरा अर विश्नोई पंथ में 'सूत जी' नांव सूं भी ओळखीजण वाळा सुरजनजी राजस्थानी भासा रै साथ-साथ संस्कृत भासा माथै भी ऊंडी पकड़ राखता। वै आपरी रचनांवां में जैसलमेर अर फलोदी में अकाल रै बगत इंदर सूं प्रार्थना कर मेह बरसावण रो भी जिक्र करियो है।
सुरजनजी रो रचना संसार घणो सांवठो है। महात्मा सुरजनदास पूनिया राजस्थानी भासा रा गौरव है। वील्होजी रै पछै जांभाणी साहित्य रा प्रमाणिक लिपिकरता भी ए ही संतकवि हा।
संत सुरजनदास पूनियां री रचनावां इण भांत है-
1.दस अवतार रा दूहा
2.असमेध जिग रा दूहा
3. कवित्त बावनी
4.कथा चेतन
5.कथा चितांवणी
6.कथा धरमचरी
7.अंगचेतन 
8.कथा हरिगुण
9.कथा औतार की
10. कथा परसिध
11.ग्यान महातम
12. ग्यान तिलक 
13.कथा गजमोख
14.कथा उषा पुराण
15.भोगल पुराण
16.रामरासौ(राजस्थानी रामायण) 
17.साखियां
ऊपर दियोड़ी सूची रे अलावा गीत, हरजस आद फुटकर रचनावां सूं भी सुरजनजी राजस्थानी भासा अर साहित्य नै समृद्ध कियो। कवित्त आद री रचना करण में सुरजनजी सिद्धहस्त कवि हा। आपरै गुरु वील्होजी रै स्वर्गवास रै बगत आप गजब मार्मिक मरसिया लिखिया (मर्सिया राजस्थानी भासा में शोक गीत रै रूप में जाण्यां जावै)। वां री घणकरी रचनावां प्रकाशित है। उल्लेखनीय है कै सुरजन जी रौ हस्तलिखित साहित्य भी जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर रै निजी संग्रहालय में उपलब्ध है।
रामरासौ अर  कवित्त बावनी नै छोड़'र वां रा 336 कवित्त फुटकल पद रूप में मिळै। ज्यां में मरुप्रदेश रै लोगां रै जीवण  रै सागै-सागै  मिनखां जूण रै कई पखां रौ चित्र उकेरिज्यो है।
रामरासौ फगत सुरजनदास जी री इ नी अपितु राजस्थानी काव्य री भी ऐक घणी महताऊ रचना है। राजस्थानी भासा में रामकाव्य परम्परा री आ तीजी चावी रचना है।
सुरजनदास जी रौ काव्य-छैत्र  घणौ लंबो-चौड़ौ हो। आपरी  ठावी विचारधारा अर  सहज भासा प्रयोग री वजै सूं ही वै लम्बे टैम ताईं कई कवियां रा प्रेरणास्रोत रहिया। वै आपरै काव्य रचनावां सूं राजस्थानी साहित्य रौ गौरव सवायो करियो है।