Anjas

सुंदरदास जी

  • 1596-1689
  • Dhundhar

दादूजी रा शिष्य अर निर्गुण संत कवियों में सैं सूं ज्यादा शास्त्रज्ञानी व काव्य कला निपुण संत कवि। योग अर अद्वैत वेदांत रा समर्थक। काव्य रीतियों सूं आछी तरै परिचित रस सिद्ध कवि।

सुंदरदास जी रौ परिचय

जन्म: दौसा,भारत

निधन: सांगानेर,भारत

संत सुन्दरदास ख्यातिप्राप्त संत दादूदयाल जी रा पाटवी सिस्य हा। मध्यकाल रै निरगुण भगति परम्परा रै संतकवियां मांय सबसूं घणा पढ़िया-लिखिया, वेद सास्त्रा रा जांणकार अर मां सरस्वती रा वरद पुत्र संत सुंदरदास रौ जलम सन् 1595 ई. मांय राजस्थान रै दौसा जिले मांय ऐक खंडेलवाल वैश्य परिवार में हुयौ।
छः बरस री आयु मांय दादूदयालजी रा चेला बण्या। रंग-रूप रा घणा फुटरा हा, जिण सूं प्रभावित होय'र इणां रौ नांव 'सुंदर' राखियौ।
दादूदयालजी रै एक दूजै सिस्य रौ नांव भी सुंदरदास हौवण खातिर इंणां नै छोटा सुंदरदास रै नांव सूं संबोधित किया जावै। बतायौ जावै कै ए बाल ब्रह्मचारी संत हा। ईग्यारह बरस री उमर मांय सुंदरदास जी वेद, सास्त्र, दरसण, साहित्य अर व्याकरण रौ अध्ययन करण खातिर कासी गया। बठै अठारह बरस तांई अध्ययन कियौ।
उण पछै फतेहपुर (शेखावाटी) पधारिया अर इण जगां बारह बरस तक लगातार जोग विद्या रौ भरपूर अभ्यास कियौ। जिण सूं इणां री ख्याति चारोंमैर फैल गी। इणी बगत मांय फतेहपुर रै नवाब अलिफ खां सूं भी इणां री गहरी दोस्ती होयगी। आपरै लौकिक जीवण रै आखिरी दिनां में सांगानेर, जयपुर रैया जठै सन् 1689 ई. मांय सुरगवास होयौ।
राजस्थान सरकार संतकवि सुंदरदास रै सम्मान मांय फगत थोड़ा बरस पैला ही दौसा जिले मांय एक पैनोरमा रौ निरमाण करायौ। जकौ संत सुंदरदास जी रै लौकिक जीवण री अजब-अनूठी जीवण गाथा रौ बखाण कर रैयौ है। बाहर सूं पधारण वाळा मेहमानां नै इणं पैनोरमा सूं इणां रै दिव्य जीवण रै कई सारा अनजान पहलुआं री सटीक अर प्रमाणिक जानकारी मिळै।

सुंदरदास जी संत रै सागै ही एक ऊंचै दरजे रा घणा पढ़िया-लिखिया अर विदवान कवि भी हा। वे सिणगार रस री कवितावां नै जै'र समान मानता हा।
कैसव री दादू 'रसिकप्रिया' नै बै आछी नीं समझता।

रसिक प्रिया रसमंजरी और सिंगारहि जानि।
चतुराई करि बहुविधि, विषै बनाई आनि।।

संत सुंदरदास जी रौ काव्य-छैत्र घणौ लंबौ-चौड़ौ है। इणां सगळी छोटी-मोटी 42 रचनावां लोक मांय चावी है। जिण में सूं 'ज्ञानसमुद्र', 'सुंदर विलास', 'सांगयोग प्रदीपिका', 'पंचेन्द्रिय-चरित्र', 'सुख समाधि', 'अद्भुत उपदेश', 'स्वप्नप्रबोध', 'वेद विचार', 'उक्त-अनूप', 'पंच प्रभाव' और 'ज्ञानझूलना'  जैड़ी कयी रचनावां घणी चावी अर लोक रै कंठा मांय रमयौड़ी है। संत सुंदरदास जी री इंण सगळी चावी रचनावां रौ एक संस्करण पुरोहित हरिनारायण शर्मा  'सुंदर ग्रंथावली' नाम सूं दो भागां मांय संपादित कियौ, जिण रौ प्रकाशन राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, कलकत्ता कानि सूं सन् 1936 ई. मांय हुयौ हो।
संत सुन्दरदास आपरी बाणी मांय इंण बात माथै जोर दियौ है कि इंण लोक मांय केवळ परमात्मा ही साच है बाकी औ सैंसार मिथ्या अर नश्वर है। उणां री बाणी मांय मानखै रौ धरती माथै जलम रौ उद्देश्य, देहधारी सतगुरु रौ  महत्व अर नाम- शब्द ‌रै भेद ने उजागर कियौड़ो है। संत सुंदरदास जी जोर दैवतां थकां आपरी बाणी मांय स्पष्ट कैवै है कि सतगुरु री सरण मुगति रौ द्वार है। सतगुरु रै बतायौड़ै मारग-मारग चल'र ही जीव नाम भगति सूं ही आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सके है।
सुन्दरदास घूमता फिरता रैवता। बे सगळे उत्तरभारत, मध्यप्रदेस, मालवा अर गुजरात ताईं फिरता-घिरता रैया। कदैई फतेहपुर, कदेई मोरां, कदेई कुरआन अर आमेर आवता - जावता। सुंदरदासजी रौ मुख्य ठिकाणौ दौसा, सांगानेर, नरायणा अर  फतेहपुर शेखावटी रहयौ। आखिरी दिनां मांय में सांगानेर रैया जठै 1689 मांय सुरगवास होयौ।
सुंदरदास रै कई सिस्य हा जिणां मांय दयालदास, श्यामदास, दामोदरदास, निर्मलदास और नारायणदास खास हा।