Anjas

संत वीरचन्द्र

भट्टारकीय साखा री सूरत गादी रा भट्टारक संत कवि।

संत वीरचन्द्र रौ परिचय

भट्टारकीय साखा री सूरत गादी रा भट्टारक संत वीरचन्द्र मध्यकालीन जैन संत काव्य परम्परा रा चावा कवियां में आदर साथै याद करीजै। वीरचन्द्र भट्टारक लक्ष्मीचंद रा सिस्य हा अर वां रै देव लोक हुयां पछै सूरत गादी माथै विराज्या। वै गुजरात अर राजस्थान मांय घणो भ्रमण कर् यो अर आपरै उपदेसां सूं लोगां नै सद्मारग दिखायौ। संत वीरचन्द्र घणां प्रतिभावान हा अर वै विद्वान हुवण रै साथै व्याकरण, न्याय सास्त्र अर  संगीत सास्त्र रा लूंठा जाणीजाण हा। वै जठै ई आपरा प्रवचन देंवता तो उठै रा लोग वां सूं घणां प्रभावित हुंवता। वीरचन्द्र आपरी विद्वता रै पांण कैई दूजा धरम प्रचारकां नै पड़ूत्तर बिहूणा कर् या।  वीरचन्द्र लूंठी साहित्यिक सेवा करी अर मौकळा ग्रंथां रौ सिरजण कर् यो। वै राजस्थानी, गुजराती, प्राकृत अर संस्कृत भासावां माथै सांतरौ अधिकार राखता। वां राजस्थानी मांय आठ रचनावां रौ सिरजण कर् यो  जिणमें वीर विलास फाग, जम्बूस्वामी वेलि, जिन आतरा, सीमधरस्वामी गीत, संबोध सत्ताणु, नेमिनाथ रास, चित्तनिरोध  कथा अर बाहुबलि वेलि आद उल्लेखजोग है। वीरचन्द्र री रचनावां री भासा माथै अपभ्रंस रौ प्रभाव अवस है पण वां री भासा सहज अर प्रभाव गुण सूं भर् योड़ी है। आपरी इण साहित्य साधना रै पांण वां नै जुगां-जुगां तांईं आदर साथै याद कर् या जावैला।