संत सेवगराम जी महाराज
सूरसागर, जोधपुर मांय 'रामस्नेही संप्रदाय' री विरक्त शाखा रै प्रवर्तक संत परसराम जी महाराज रा परमहंस सिष्य। रचित वाणीयों में सामान्य जीवण ने इदको बणावण सागै ही आत्मज्ञान, आत्म कल्याण अर जनहित री भावना।
सूरसागर, जोधपुर मांय 'रामस्नेही संप्रदाय' री विरक्त शाखा रै प्रवर्तक संत परसराम जी महाराज रा परमहंस सिष्य। रचित वाणीयों में सामान्य जीवण ने इदको बणावण सागै ही आत्मज्ञान, आत्म कल्याण अर जनहित री भावना।
रामस्नेही संप्रदाय मांय संत सेवगराम जी महाराज रौ नांव घणौ चावौ है। भौतिक देह रा घणां फूटरा अर तेज सूं युक्त होवण खातिर आप परमहंस री उपाधि सूं मंडित हा। आप सुरुआत में गृहस्थी जीवन मांय हा बाद में वैराग्य जागियो अर आप घर, परिवार, धन, माया जैड़ी भौतिक सुख सुविधावां छोड़'र निवृत्त मारग धारण कर लियौ।
तज कुल कुटुंब सो परिवार, तजि बलभा तरूणा तनचार।
तजे सब सुक्ख सरीर विलास, तजे धन धाम प्रजंक ऐवास॥
(परसराम जी की परची)
विरक्त शाखा रै प्रवर्तक संत परसराम जी महाराज सूं रांम नाम री मंत्र दीक्षा ले'र आप विक्रम संवत् 1861 रै आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा रै दिन रामस्नेही संप्रदाय मांय दीक्षित हुया। सेवगराम जी महाराज री बाणी 'अनुभव बाणी' रै नाम सूं छपियोड़ी है।
बाणी कई सारा अंगां रै मांय बांट्यौड़ी है। गुरु-सिस्य संवाद रै सागै ही ग्यान, भगति, नीति, गुरु महिमा, वंदन अर लोक चेतना आपरी बाणी रा खास प्रसंग है। गुरु-सिस्य बातचीत रै रूप में आप कई सारा विषय प्रसंगां रै बारै में विचार राख्या है, जका भाषा अर भाव री गहराई री दीठ सूं घणा सांतरा है। संत सेवगराम जी महाराज री बाणी साहित्य रै रूप में भी घणी सबळ है अर आज भी लोक जीवन रौ पथ-प्रशस्थ कर रैयी है। आपरी बाणी मांय जन सामान्य रै जीवन नै इदकौ बणावण रै सागै ही आत्मज्ञान, आत्मकल्याण अर जनहित री भावनां कूट कूट'र भरियौड़ी है। आप डील-डौल अर रंग-रूप सूं घणा फुटरा अर ईदगा होवणै रै सागै ही आत्मग्यान, गुण, विद्या अर शास्त्र-ग्यान रा भी जबर जाणकार हा। आपरौ नाम रामस्नेही संप्रदाय रा चावा संत कवियां मांय गिणिजै। आपरी बाणी रामस्नेही संप्रदाय मांय 'धरम मणि' नाम सूं भी अलंकृत है।