संत हरिदेवदास महाराज
सिंहथल पीठ रा आचार्य अर संस्थापक-प्रचारक। रचनावां रो आधार समाज, साधना अर विश्व कल्याण री भावना।
सिंहथल पीठ रा आचार्य अर संस्थापक-प्रचारक। रचनावां रो आधार समाज, साधना अर विश्व कल्याण री भावना।
राजस्थानी भासा रै संत साहित्य मांय रामस्नेही संप्रदाय रौ नाम साहित्य सिरजण री दीठ सूं सिरमौर है। इण संप्रदाय रै मांय कई चावा ठावा संत कवि हुया जिका राम नाम री गूंज जण-जण तक पहुचांवण रौ काम करियो है। राम नाम रुपी इम्रत रौ पियालो मरूधरा रै लोगां नै पिलावण रौ काम करणै वाळा रामस्नेही संत कवियां मांय संत हरिदेवदास जी महाराज रौ नाम सिरमौर है। हरिदेवदास जी रामस्नेही संप्रदाय री सिंहथल शाखा रा संस्थापक हरिरम्दास जी रा प्रमुख शिष्य अर उत्तराधिकारी नारायणदास जी रा चेला हा। वै आपरै लौकिक जीवन रै दस बरस री उम्र मांय ही रामस्नेही संप्रदाय मांय दीक्षित हुया और ग्यान प्राप्ति री खोज सुरु कर दी। आप हरदम राम नाम रै सुमिरण में ही लाग्या रैवता। आप रै श्रीमुख सूं उच्चारित हरदम ररंकार रूपी ध्वनि सूं सिंहथल धाम राम मय हो जावतो। आपरा तत्वरूपी गुण, ग्यान पिपासा अर भगति रै मांय लगन देख नै ही आपने सिंहथल पीठ रा सिरमौर थरप्या गया।
भारतीय आध्यात्म गियान परम्परा रै प्रचार अर त्यागी संतोषी जिंदगी जीवण वाळा हरिदेवदास जी आपरी बाणी मांय जिण-जिण प्रसंग रौ बखाण करियो है वै सगळा ही लोक मानस नै आध्यात्मिक धरातल माथै खड़ा करणै मांय सहायक है। आप आत्म चिंतन री सहज साधन पद्धति रै साथै धीर-गंभीर अर अनुभवी विचारां सूं लोक अर समाज मांय चेतना जगाई। सिरै कोटि रै संत महात्मा मांय आप जाण्यां जावै। समाज, साधना अर विश्व कल्याण री भावना आपरी बाणी रौ आधार हो। आप लौकिक संसार मांय घणा बरस कोनी रैया पण फिर भी इण अल्प समै में ही अणूतौ साहित्य सिरजण कर'र लोक-समाज रै मायं ठावी ठौड़ बणाई। आपरै सिध्दांतां अर साहित्य रै पांण आप आज भी लोक में अमर है।