किशनदास जी महाराज
रामस्नेही संत दरियावजी (रैण शाखा) रा प्रमुख शिष्य। भक्ति, नीति अर गुरु महिमा सूं संबंधित लगभग चार हजार पदां रा रचैता।
रामस्नेही संत दरियावजी (रैण शाखा) रा प्रमुख शिष्य। भक्ति, नीति अर गुरु महिमा सूं संबंधित लगभग चार हजार पदां रा रचैता।
राजस्थान में रामस्नेही संत संप्रदाय री चार मुख्य पीठां में सूं एक रैण पीठ (नागौर) रा संस्थापक संत दरियावजी रै चार प्रमुख सिष्या में सूं एक हा संत किशनदास जी महाराज।आपरौ जलम विक्रम संवत 1746 रै माघ महिणै री चांदणी पांचम नै नागौर जिले रै टांकला गांव में एक मेघवंशी परिवार में हुयौ। आपरै लौकिक संसार पिताजी रौ नाम दासाराम जी अर माता जी नाम महादेवी हो। टांकला गांव आपरी जलम भौम रै सागै ही साधना भौम रै रुप में भी जाण्यौ जावे। बालपणै सूं ही भगत प्रवृत्ति वाळा संत किशनदास जी महाराज कई बरस गृहस्थ जीवन व्यतीत करणै रै बाद विक्रम संवत 1773 रै वैशाख महिणै री चांदणी ईग्यारस नै गुरु दरियावजी सूं दीक्षा लै'र संत बणग्या। आप एकदम त्यागी, संतोषी कर शांत प्रवृत्ति रा संत मान्या जावै।
खेड़ापा रै संत दयालुदास ने आपरै बारै में अपणै हिरदै रा उद्गार इण भात व्यक्त किया है कै-
भगत अंश प्रगट भए, किसनदास महाराज चिना।
पदम गुलाब स फूल, जलम जग जल सूं न्यारा।
सीपां आस आकास, समंद अप मिळै न खारा।
प्रगट रामप्रताप, अघट घट भया प्रकासा।
अनुभव अगम उदोत, ब्रह्म परचै तत भासा।
मारुधर पावन करी, गांँव टूंकले बास जन।
भगत अंश प्रगट भए, किसनदास महाराज धिन॥ (भक्तमाल - छंद संख्या 437)
चार हजार रै लगैटगै छंद परिमाण वाळो आपरौ साहित्य अणूतौ लूंठो है जिण में छोटा-मोटा 14 ग्रंथां में 914 चौपाई, 664 साखियां, 14 कवित्त, 11 हरजस, 15 चंद्रायण, 22 कुंडळिया अर दो आरती आद है।आपरी बाणी में ग्यान, भगति, नीति कर गुरु महिमा रौ महताऊ बखाण है। आपरी सादगी, ग्यान री गहराई अर शांत भाव सूं प्रभावित होय'र आपरा चैला बणण वाळा री लंबी सूची देखणने मिळै। दयालु दास जी भक्तमाल में आपरै 13 शिष्यां रौ जिक्र कियौ है। आपरौ परम सानिध्य प्राप्त करण वाळा ए 13 शिष्य हा हेमदास, गोरधनदास, खेतसी, हरिदास, मेघोदास, हरिकिशन, बुधाराम, लाडूराम,भैरूदास, सांवलदास, टीकूदास, शोभाराम अर दूधाराम।
विक्रम संवत 1825 रै आषाढ़ मास में आपरी भौतिक देह टांकला गांव में परम तत्व में विलीन हुयगी।