ज्योतिपुंज
वागड़ी रा सिरैनांव कवि-गद्यकार। केन्द्रीय साहित्य अकादमी सूं सम्मानित।
वागड़ी रा सिरैनांव कवि-गद्यकार। केन्द्रीय साहित्य अकादमी सूं सम्मानित।
जन्म: 28 Sep 1952 | टामरिया,भारत
जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ रौ जलम डूंगरपुर जिले रै टामटिया गांव में 28 सितम्बर 1952 नै व्हियौ। वां संस्कृत अर इतियास में एम.ए. करी अर तापछै पत्रकारिता में डिप्लोमा कियौ। वां राजस्थानी में ई एम.ए. करी अर गोल्डमेडलिस्ट रैया। वांरा पिता घनश्याम शर्मा सुतंतरता सेनाणी हा। ज्योतिपुंज लगैटगै एक बरस तांई टाबरां नै भणावा रौ काम करियौ अर पछै बरस 1977 सूं आकाशवाणी मांय प्रसारण अधिकारी बणग्या।
हिंदी-राजस्थानी में लगोलग रचनारत ज्योतिपुंज राजस्थानी कविता री जातरा में एक महताऊ ठौड़ राखै। डूंगरपुर अर उणरै आसै-पासै रै परिवेश अर संवेदना नै वां आपरी मां-बोली वागड़ी में हेम ढाळै ज्यूँ ढाळी। वांरै पैलै कविता-संग्रै ‘चन्नण ना छांटा’ नै पाठकां रौ घणौ सनेव मिळ्यौ अर अठै सूं सरू हुवी जातरा आज-लग सांगोपांग चालै है। इण पछै वांरी दूजी किताब ‘बोल डूंगरी ढब ढबू’ छपी। इण संग्रै मांय ‘ट्राइब-लाइफ’ रा सांतरा अैनांण पड़तख निगै आवै।
ज्योतिपुंज जितरा चावा कवि है;उतरा इज चावा गद्यकार। आधुनिक राजस्थानी नाटकां में वांरौ नाटक ‘कंकू कबंध’ सिरै गिणीजै। इणीज नाटक माथै वांनै केन्द्रीय साहित्य अकादमी रौ सिरै सम्मान पण मिळ्यौ। वांरौ लेखन समाज री अबखायां अर भूंड नै डंडै। आदिवासी खांटीपणौ, कुदरत सूं वांरौ रिस्तौ अर जीवण री लांठी हूंस रा चितराम ज्योतिपुंज री कवितावां में साव उघड़ परा साम्ही आवै।
ज्योतिपुंज उदैपुर री चावी साहित्यिक संस्थान ‘युगधारा’ रा संस्थापक पण है। राजस्थानी मानता आन्दोलन मांय ई वांरी भूमिका सीधी दीसै। ज्योतिपुंज राजस्थानी भासा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर री कार्यसमिति अर केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली रै परामर्श मंडल रा सदस्य पण रैया। ‘राजस्थानी जाजम’ नाम सूं एक संस्था रौ संचलान पण ज्योतिपुंज करै।
ज्योतिपुंज नै वांरै सबळै लेखन सारु अलेखूं सम्मान मिळ्या है जिणमें राजस्थानी भासा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी रौ सूर्यमल्ल मीसण सिखर पुरस्कार, मेवाड़ फाउंडेशन रौ ‘महाराणाकुम्भा अवार्ड’ अर केंद्रीय साहित्य रौ सिरै अवार्ड सामिल है। इण बगत वै उदयपुर मांय रैवास करै।
प्रकासित टाळवी पोथियां
‘सन्नण ना सांटा’, ‘बोल डूंगरी ढब ढबू’ ‘बोलो मनु! बोलते क्यों नहीं’ ‘धरतीराणु’ (कविता-संग्रै), ‘कंकू कबंध’ (नाटक). ‘वागड़ी कहाण्यां’, ‘वागड़ी लोकगीत’ (संपादन) ‘सिरी संपिगे (चंद्रशेखर कंबार रै कन्नड़ नाटक रौ अनुवाद )