Anjas

जांभोजी

  • 1451-1536
  • Marwar

'विश्नोई संप्रदाय' रा प्रवर्तक। रचनावां में सगुण अर निर्गुण दोनूं धारावां रो प्रभाव। लोक में विष्णु रा अवतार अर आधुनिक पर्यावरण वैज्ञानिक रूप में चावा।

जांभोजी रौ परिचय

जन्म: पीपासर,भारत

निधन: लालासर,भारत

विसनोई (विश्नोई) पंथ रै संस्थापक जांभोजी रौ व्यक्तित्व घणौ अनूठो है। इण पंथ री मान्यता है कै जांभोजी साक्षात भगवान विष्णु रा अवतार है। जांभोजी री बाणी अर उपदेस सूं आ जाणकारी मिळै है कै जांभोजी रौ मरूभूमि माथै अवतार सतजुग में भगत प्रहलाद सूं कियौड़ौ कौल (वादा) निभावण सारू हुयौ। जांभोजी लोगां रै कल्याण सारूं विसनोई पंथ री थरपणा करी अर गुणतीस धरम-नियमां री ऐक आचार संहिता दी। लोगां नै सही जुगति सूं जीवण निर्वाह अर मुगति रौ सीधो-साधो बिना कोई लाग-लपट रौ मारग बतायौ। विसनोई पंथ रै संस्थापक गुरु जाम्भोजी रौ जलम विक्रम संवत 1508, भादवा बदी आठम (कृष्ण जन्माष्टमी) रै दिन नागौर जिले रै पीपासर गांव में ठाकुर लोहटजी पंवार रै घर माता हांसा देवी रै गरभ सूं हुयौ।
मान्यौ जावै कै इतिहास में जग चावा राजा विक्रमादित्य री चालीसवीं पीढ़ी में रोलोजी पंवार क्षत्रिय सिरदार होया जकां पीपासर रियासत रा ग्रामपति ठाकुर हा। उणां रै दो बेटा अर एक बेटी ही। बड़ा बेटा लोहट जी पंवार अर छोटा पूल्होजी पंवार, बेटी रो नांव तांतू हो। इण लोहट जी पंवार ने इज गुरु जाम्भोजी रा लौकिक पिता होवण रो गौरव मिल्यौ। गुरु जांभोजी सामान्य बाळक नी हा। वै अलौकिक प्रतिभा लेय'र इण धरा माथै अवतरित हुया। उणां रै सगळै सांसारिक जीवन नै चार भागां में बांट्यौड़ो है- 
1. बाल्यकाल- जलम सूं सात बरस तक।
2. गौचारण काल (पशुचारण काल)- सताइस बरस री उमर तक।
3.विसनोई पंथ री थरपणा- चौंतीस बरस री उमर मांय।
4. ग्यान रौ प्रचार-प्रसार- (उपदेस काळ)-इक्यावन बरस तक।
आपरै माता- पिता रै परलोक गमन पछै आप पू्र्वजां री सगळी धन -दौलत गरीबां नै बांट'र खुद संमराथळ नांव रै धोरै माथै रैवण लागिया। संवत् 1542 मे आथूणै राजस्थान में भूंडौ अकाल पड़यौ। उण अबखाई में गांव रा गांव माळवै सांमी जावण लाग्या। विखै री उण घड़ीयां में जांभोजी संमराथळ धोरै माथै लोगां नै रोक अर आपरी दिव्य शक्ति सूं लोगां नै अनाज, पाणी अर पसुवां नै चारौ-कूचौ देय'र लोक रक्षा रौ बीड़ौ उठायौ। उण बरस ही संवत् 1542 री कार्तिक बदी आठम रै दिन संमराथळ धोरै माथै हाजिर लोगां नै पाहळ (अभिमंत्रित जल) देय'र विसनोई पंथ री थरपणा करी। सबसूं पहला आपरै काका पूल्होजी नै पाहळ दिनौ, पछै आयोड़ा लुगाई, टाबर अर मिनखां नै। गुरु जाम्भोजी रै विसनोई पंथ में सबसूं घणौ मान गुणतीस धरम-नियमां रौ है। गुरु जांभोजी रा हुजुरी सिस्य ऊदोजी नैण हुया जकां इणं धरम नियमां नै इण भांत एक पद्य रूप में उकेरिया-
तीस दिन सूतक, पांच ऋतुवन्ती न्यारो, सेरा करो स्नान, शील, सन्तोष शुची प्यारो। 
द्विकाल संध्या करो, सांझ आरती गुण गावो, होम हित चित प्रीत सूं होय, वास बैकुंठे पावो । 
पाणी, बांणी, ईन्धणी दूध इतना लीजै छाण, क्षमा दया हिरदै धरो, गुरु बतायो जाण।
 चोरी, निन्दा, झूठ बरजिये, वाद न करणो कोय।
अमावस्या व्रत राखणो, भजन विष्णु बतायो जोय।
जीव दया पालणी, रूंख लीला नहिं घावै, अजर जरै, जीवत मरै, वे वास बैकुण्ठा पावै।
करे रसोई हाथ सूं, आन सूं पला न लावै, अमर रखावै थाट, बैल बधिया न करावै।
अमल, तमाखू, भांग, मद मांस सूं दूर ही भागे, लील न लावै अंग, देखत दूर ही त्यागे॥
गुरु जाम्भोजी री वांरा उपदेस काळ में कई सारा इतिहास प्रसिध्द राजा महाराजावां सूं भेंटवार्ता भी हुई। जिणां में राव सातल, राव बीदा, नेतसी सोलंकी, मुहम्मद खां नागौरी, राव लूणकरण, सिकंदर लोदी, कर्नाटक रा शेख सद्दो, मुल्तान रा सधारी मुल्ला, राव जैतसी, राणा सांगा, झाली राणी अर मालदेव जैड़ा नांव मुख्य है।
गुरु जाम्भोजी रै मुख सूं उच्चारियौड़ा सबदां रौ नांव सबदवाणी है, जिणां में 120 सबद है। आप लौकिक जीवन रौ पहलौ सबद नागौर रै तांत्रिक ने सुणायो। गुरु जाम्भोजी रै विसनोई पंथ री साथरी अर भंडारा भी है जिणां में पीपासर,समराथळ, मुकाम, जांभोळाव, जैसलां, जांगलू, रोटू, भींयासर, लोदीपुर, लालासर, रामड़ावास, लोहावट, रणीसर, पुर-दरीबा, मुंजासर, गुड़ा साथरी आदि है।
गुरु जाम्भोजी हवन करणौ अनिवार्य मान्यौ। हवन रै बिना कोई भी तरह रौ संस्कार संपन्न नी हो सकै। जीवदया पालणी अर लीलौ रूंख नीं काटणौ, आपरै रै इण धरम नियम रै कारण दुनिया में जांभोजी एक पर्यावरण वैज्ञानिक रै रूप में भी चावा है।
मध्यकाळ में राजस्थान री भोळी-भाळी अर अनपढ़ जनता तंत्र-मंत्र, मूर्ति पूजा, आडंबर, पाखंड रै सागै ही कई सारा नसां सूं जकड़ियौड़ी ही। जांभोजी आपरै उपदेस अर जीवन दर्शन सूं लोगां नै उण सब सूं मुगति दिलाई। जांभोजी एक धर्म संस्थापक रै सागै ही एक सफल समाज सुधारक भी हा वै समाज में फैल्यौड़ा भेदभाव, ऊंच नीच, जाति प्रथा, ईर्ष्या, द्वेस, हिंसा, चोरी, लूट-डकैती, झूठ, नशा जैड़ी बुरी प्रवृतिया रौ नास कर'र मानवतावादी समाज री स्थापना करी अर उण में सत्य, ईमानदारी, अहिंसा, परोपकार, जीव मात्र रै प्रति दया जैड़ा गुणां ने स्थापित किया।
गुरु जाम्भोजी रा उपदेस कोई विसेष जाति या धरम तक सीमित ना होय'र मानव मात्र खातिर है। उणां री बाणी सबदवाणी या जंभवाणी रै नांम सूं जाणी जावै है। जिण मांय 120 सबद, 29 धर्म नियम अर थोड़ा मंत्र सामिल है। गुरु जाम्भोजी आपरौ पांचभौतिक सरीर लालासर साथरी में कंकेहडी़ वृक्ष रै नीचे मिगसर बदी नवमी संवत् 1593 में छोड़ियो। इण दिन नै 'चिलत नवमी' रै नाम सूं भी जाण्यो जावै। ('चिलत' उर्दू भाषा रौ सबद है इण सबद रौ अरथ है इण धरती सूंं कोई महापुरुष री कमी होवणों।) पण उणां री पंचभौतिक देह नै तालवा गांव में समाधिस्थ किया, जकी जगै पछै मुकाम नांव सूं औळखीजण लागी। मुकाम, समराथळ अर लालासर जगै बीकानेर जिले री नोखा तहसील में है।
जांभोळाव जगै जोधपुर जिले री फलोदी तहसील में है उण जगै गुरु जाम्भोजी खुद लोककल्याण सारू एक सरोवर खुदवायौ हो। जो कै विसनोई पंथ रौ सबसूं मोटो तीर्थ स्थल है। मुकाम समाधि वाली जगै साल में दो बार, एक आसोज अमावस्या अर दूजो फाल्गुन अमावस्या रौ मेळो भरियो जावै, जिण में भारत बरस रा सगळा विसनोई भाग लेवै। जांभोळाव में भी साल में दो बार मेळा भरिया जावै जिण में चैत्र अमावस्या रौ मोटो मेळौ आखै देस में चावौ है।