हरदास मीसण
मध्यकालीन डिंगल कवियां री पांत में आगीवाण नाम। भाषा प्रांजल डिंगल। 'जालंधर पुराण' अर 'भृंगी पुराण' नांव री दो प्रमुख रचनावां मिलै।
मध्यकालीन डिंगल कवियां री पांत में आगीवाण नाम। भाषा प्रांजल डिंगल। 'जालंधर पुराण' अर 'भृंगी पुराण' नांव री दो प्रमुख रचनावां मिलै।
हरदास मीसण मध्यकालीन डिंगल कवियां री हरोळ पांत में आगीवाण मान्या जावै। इणांरी भाषा प्रांजळ डिंगल है।
इणांरो जलम बोगनयाई (जैसलमेर)गांव रा मीसण अचलदास रै घरै सोलहवीं सदी में हुयो-
हुदड़ जोशी थळ में हुआ, हुआ थळ में हरदास।
हरिजन केअ थळ में हुआ, दुथी ईसरदास॥
महात्मा ईसरदासजी इणां रा मामा हा सो कविता री गुटगी इणांनै नानाणा पख सूं मिळी। इणां री घणकरीक रचनावां अणछपी है। जकी छपी है उणांमें भृंगी पुराण, जालंधर पुराण आद प्रमुख है। बाकी री रचनावां री विगत इणगत है-सभापर्व, हररस, शिवगीत, चाल़कनेच रा छंद, सूरज रा छंद, भक्तिनां फल़, मन ने उपालंभ नुं गीत, सिरोही ना राव भांण नुं गीत, संग्रामजी जाडेजा नुं गीत, तोगाजी जाडेजा नुं गीत, मानसिंहजी कछवाहा नां गीत, विद्यानीं कविता।
आमेर महाराजा मानसिंहजी इणांनै एक दूहै माथै 10लाख दिया। हरदासजी वै रुपया हाथोहाथ कलंग कवि नै दे दिया-
हरनाथ चारण हुआ जबरा, दोहा पर दस लाख लिया।
दस लाख उसने कुलंग कवि को लिया ऐसा दिया॥