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हरजी भाटी
बाबा रामदेवजी रै भगति परंपरा रा अनुभवी अर पूग्योड़ा ज्ञानी-ध्यानी संतकवि। प्रसिद्धि रौ आधार 'बाबा रामदेव रौ ब्यावलो' महाकाव्य।
बाबा रामदेवजी रै भगति परंपरा रा अनुभवी अर पूग्योड़ा ज्ञानी-ध्यानी संतकवि। प्रसिद्धि रौ आधार 'बाबा रामदेव रौ ब्यावलो' महाकाव्य।
लोक देवता बाबा रामदेवजी री भगति परंपरा में राजस्थानी भासा अर साहित्य नै समृद्ध करण वाला संतकवियां में संतकवि हरजी भाटी रौ नांव घणै आदर अर सम्मान सूं लेईजै। विक्रम संवत री 18वीं सदी में जोधपुर जिले री फळोदी तहसील रै चाडी गांव में हरजी भाटी रौ जलम भाटी राजपूत परिवार में हुयौ। आपरै पिता जी रौ नांव उगमसिंह जी भाटी अर दादोसा मानसिंह जी हा। बाबै रामदेव जी री भगति रै प्रताप सूं इंणा रौ नांव जग चावौ अर लोक- समाज में जण-जण रै कंठां में बस्योड़ो है। संत हरजी भाटी बाळपणं में ही आपरै मां-बाप रै परलोक सिधार जावण री वजह सूं आपरै नानाणै बैठवासिया गांव में रैवण लाग्या। बाबै रै प्रति बालपण सूं ही गहरी आस्था राखण वाला हरजी भाटी ने एक दिन भेड़-बकरियां चरावतां समै बाबा रामदेवजी एक साधु रौ रूप बणाय'र दरसण दिया। साधु भेख में बाबा रामदेवजी हरजी भाटी नें दो चमत्कार भी दिखाया। पहलो चमत्कार बिना ब्याही बकरी रै थणां सूं दूध री धार बहण लागी अर दूजो चमत्कार बैशाख-जैठ महिणै री बळती लाय में सुख्योडेै नाडियै नै जळ सूं लबालब भर दियौ। आम ढंग सूं बाबै रा दरसण पाय'र चमत्कार देखियां बाद हरजी भाटी आनन्द विभोर होय'र बाबै रै पगां में माथौ टेक दियौ। बाबै आपरौ आसिरवाद देवतां थका एक कपड़ै रौ घोड़ो पूजा करण सारू देय'र अंतर्ध्यान होय गिया। हरजी भाटी इण घोड़े नै हर बखत साथ राखता। वे भेड़ बकरियां चरावणी छोड़ दी अर घूम-घूम नै बाबै रामदेव जी री लीला रा पद गावता। जोधपुर शहर री मसूरिया पहाड़ी जठै बाबा रामदेवजी रै गुरु बालीनाथ जी री समाधि, उठै रात्रि जागरण में हजारों लोगां री भीड़ में बाबा रामदेव जी रा पद गावतां-गावतां श्रद्धालुआं नै भाव विभोर कर दिया। बाबा रामदेवजी रा दरसण पायां बाद हरजी भाटी रै हियै में रामदेवजी री भगति दिन दूणी रात चौगुणी बढण लागी। वे हरदम बाबै रा भजन अर जस गावण में लाग्योड़ा रैवता। हरजी भाटी बाबा रामदेवजी री भगति परंपरा रा अनुभवी अर पूग्योड़ा ज्ञानी-ध्यानी संतकवि हा। वां री प्रसिद्धि रौ उजास बाबा रामदेव रौ ब्यावलो ग्रंथ है, जको एक प्रकार सूं 700 छंदां में रच्योड़ो महाकाव्य है। कवि ब्यावला ग्रंथ रौ लेखन कार्य बाबै रै दरसण दिया पछै बैठवासिया गांव रै में ही रैवतां थकां कियौ। हरजी भाटी लोक अर समाज में बाबै रे प्रति अटूट आस्था-विश्वास अर भगति खातिर पंडित जी रै नांव सूं जाण्यां जावण लागा। बाबै रौ ब्यावलो राजस्थानी भासा रौ महत्वपूर्ण काव्य है, इंण मे बाबै रौ जीवन चरित इतिहास'र सामाजिक दशा, बाबा रामदेवजी री वंशावली, जीवनी, मंगल अरदास, जलमपतरी अर बधावणा रौ बड़े ही सुलझ्योड़ै ढंग सूं काव्यात्मक बखाण हुयौ है।
हरजी भाटी आपरै जीवण रै छैकड़लै काळ तक बैठवासिया गांव में ही रह्या। हरजी भाटी रो ठिकाणौ होवणं रै कारण बैठवासिया गांव पंडित जी री ढाणी कहीजण लागौ। हरजी भाटी री समाधि वाळी जगै माथै बाबा रामदेवजी रौ मंदिर बणयोड़ो है। जठै हर बरस भादवा अर माघ महिणै री चानणी ईग्यारस नै मेळौ मंडै।