गवरी बाई
वागड़ री मीरां रै नांव सूं ओळखीजै। रचनावां में ज्ञान, भगती अर वैराग री महिमा बताइज्योड़ी है। भाषा राजस्थानी जिण में ब्रज, गुजराती अर संस्कृत रा शब्द भी निंगै आवै।
वागड़ री मीरां रै नांव सूं ओळखीजै। रचनावां में ज्ञान, भगती अर वैराग री महिमा बताइज्योड़ी है। भाषा राजस्थानी जिण में ब्रज, गुजराती अर संस्कृत रा शब्द भी निंगै आवै।
गवरी बाई रौ जलम दिखणादै राजस्थान रै डूंगरपुर जिले में नागर ब्राह्मण रै घरां विक्रम संवत् 1815 में हुयौ। राजस्थान रै वागड़ अंचल में सगुण क्रिसण भगति री अलख जगावण वाळी भक्तमति गवरी बाई 'वागड़ री मीरां' अर 'मीरां रौ अवतार' नाम सूं भी जाण्यां जावै। गवरी बाई रै जुग में समाज में ज्ञान अर शिक्षा री घणी कमी ही। इणां रै जुग रौ राजस्थानी समाज कई तरह रै जात-पांत रा बंधना में बंधियौडौ हो। अंधविस्वास अर कुरीतियां, जियां पड़दा प्रथा, सती प्रथा, मौसर, बहुविवाह, अणमेळ ब्याव, बाळपणै रा ब्याव आद सूं समाज काठो कळिज्योड़ो हो। बाळविवाह जैड़ी कुरीति सूं गवरी बाई भी अछूता नी रैया। इणां रौ छोटी आयु में ब्याव हुयग्यौ पण विधाता सासरै रौ सुख इणां रै भाग में नी लिख्यो। मान्यौ जावै है कै गवरी बाई बाळपणै में ही पति-सुख सूं वंचित हुयग्या। पति रौ सुरगवास होवणे सूं गवरीबाई रौ जीवण भगवत भगति में बीत्यो। मीरांबाई ने आदर्श मान'र गवरी बाई क्रिसण भगति ने आपरै जीवण रो आधार बणाय लियौ। इणां री भगवान क्रिसण रै प्रति गहरी आस्था अर प्रगाढ़ भगति भावना ने आदर दिरावता थका डूंगरपुर रा राजा महाराव शिवसिंह इणां रै खातिर 'बाल मुकुंद मिंदर' बणाय'र दियौ।
गवरी बाई आपरै लौकिक जीवण रौ घणकरौ बगत इंण मिंदर में श्री बाल मुकुंद क्रिसण री भगति मांहि बितायौ। ए खुद घणा पढ्या-लिख्या नीं हा पण ग्यान, भगती अर वैराग री महिमा गावता रैवता। गवरी बाई रा लिख्यौड़ा लगैटगै 610 पदां रौ एक संग्रह मिळै। जिण सूं गवरी बाई री भगति भावना,आपरै ईस्ट रै प्रति प्रगाढ़ आस्था अर समझ री जाणकारी मिळै। गवरी बाई रा लिख्यौडा़ घणकरा पद फुटकल पदां रै रूप में है कोई प्रबंध या मुक्तक काव्य रचनावां नी मिळै। इणां रा घणकरा पद आपरै ईस्ट री स्तुति, वैराग्य, क्रिसण री लीलावां अर चरित सूं जुड़ियौड़ा है। सगळा पदां में गवरी बाई रै हिरदै रा गहरा उद्गार है। परब्रह्म परमात्मा री निरगुण अर सगुण दोनों भगति धारावां इणां रै पदां में देखण नै मिळै। निरगुण रै सागै ही विसणु, राम, क्रिसण ,नटवर-नागर जैडा़ नामां रौ जिक्र सगुण भगति धारा नै दरसावै।
सगुण भगति धारा अर निरगुण भगति धारा रौ अनूठो मैळ हौवतां थकां भी विद्वान गवरी बाई रा पदां में निरगुण भगति धारा रौ गहरौ प्रभाव मानै। निरगुण भगति धारा रै संतकवियां में जकौ दरजो सुंदरदास ने मिळयौ वो ही दरजो अर सम्मान संत कवयित्रियां में गवरी बाई ने प्राप्त है।
इणां री रचनावां में राजस्थानी, गुजराती अर ब्रज भासावां री सबदावली परोटीजी है।
रचना री बानगी इणं भांत है-
होली खेलत मदन गोपाल।
मोर मुकुट कर काछनी छाजे, चंचल नैण विसाल।
सब सखियन में मोहन सोहत, ज्यू तारन बिच चांद उजाल।
चोबा चन्दन और कुमकुमा, उडत अबीर गुलाल ।
ताल मृदंग झांझ डफ बाजे, गावन बसंत धमाल ।
गवरी के प्रभु नटवर नागर, निरखी भई निहाल ॥
क्रिसण भगत कवयित्री रौ मान-सन्मान न सिर्फ वागड़ अंचल तक ही है अपितु आखै राजस्थान में सोभित है।
भगतां री महिमा अपरम्पार है, जिण-जिण आपरै जीवण री बागडोर भगवान ने सौंप दी, वै ईस्वर रै भगति परताप सूं अजर-अमर है। विक्रम संवत् 1865 रै लगैटगै गवरी बाई आपरी सांसारिक जात्रा पूरी कर इणं लौकिक संसार सूं विदा होय गिया।