Anjas

दुरसा आढा

  • 1535-1655
  • Marwar

राजस्थान रै मानीजेड़ा कवियां में से एक।

दुरसा आढा रौ परिचय

जन्म: धूंंधला सोजत,भारत

निधन: पांचेटिया,भारत

मधयकालीन सिरै राजस्थानी कवियां में दुरसा जी रो नांव हरोळ में है। दुरसा जी जीवण में आसाधारण सामाजिक प्रतिष्ठा, विपुल वैभव अर पारिवारिक सुख रै सागैई जीवेतशरदशतम रै सूत्र नै सार्थक कियो। दुरसाजी रो जलम मेहाजी आढा रै घरै हुयो। आपरी मां रो नांव धनीबाई हो, जो कि इतिहास प्रसिध्द गोविंद बोगसा री बैन हा। साहित्य इतिहास लिखण वाळां में दुरसाजी रै जलमकाल नें लेय'र भिन्न भिन्न मत है। हीरालाल माहेश्वरी दुरसाजी रो जलम वि.सं. 1592 अर संवत् 1595 दोनूं ई बताया है अर आ ई बात साकरियाजी आद विद्वानां भी लिखी है पण डॉ. शक्तिदानजी कविया आपरै एक आलेख में दुरसाजी रो जलम 1595 सूं 1600 रै बिचाळै अर मृत्यु संवत् 1699 वैसाख सुदी सातम नै मानी है। कविश्रेष्ठ दुरसाजी री रचनावां में किरतार बावनी, विरुद छिहतरी, छंद चाळकनेच रो, परमेसरजी री नाममाळा, कुंवर अजाजी री भूंचर मोरी री गजगत, राव अमरसिंघ रा झूलणा, करण रामोत रा दूहा, विरमदे सोलंकी रा दूहा, राव सुरताण रा झूलणा, राजा मानसिंह रा झूलणा आद चावी ठावी है। कविश्रेष्ठ दुरसाजी री भासा प्रांजल परिस्कृत अर भाव प्रवणता री दीठ सूं सिरै है। राजस्थानी साहित्य जगत में कवि दुरसाजी नै राष्ट्रीय कवि री संज्ञा सूं अभिहित किया जावै, क्यूंकै आप ही मुगल सत्ता रै विरोध में लड़ण वाळै महाराणा प्रताप रै सुजस री सोरम विस्तीर्ण करण में आगीवाण हा। कवि राष्ट्रीयता रा भावां नै पोखण अर मुग़ल सत्ता रै विरोध मैं लङण वाळै तमाम सूरां रै सुजस नें आपरी कवितावां में अंकित कर`र भारतीय जन मानस में चेतना अर चिंतन जगावण री पुरसल खेचळ करी। महाराणा प्रताप री प्रसंसा में रचित छिहत्तर सौरठा में महाराणा रै स्वाभिमानी, स्वातंत्र्य चेता अर निडर व्यक्तित्व रो निरूपण हुयो।


अकबरिये इकबार, दागल की सारी दुनी।
अणदागल असवार, रहियो राण प्रतापसी॥
अकबर पत्थर अनेक, के भूपत भेळा किया।
हाथ न आयो हेक, पारस राण प्रतापसी॥


दुरसाजी जैड़ी सिध्दहस्तता काव्य छेतर में राखता वैड़ी इज निपुणता रणांगण में ई राखता। ओ ही कारण है कै आपरा घणकरा डिंगल गीत तत्कालीन शूरवीरां माथै सृजित है।
कवि श्रेष्ठ दुरसाजी भलांई अभिजात्य वर्ग रा कवि मान्या जावै पण उणारी 'किरतार बावनी' नामक रचना पढ़्यां पछै आ बात सपाट स्पष्ठ हुय जावै कै कवि री सोच शोषित, दलित, गरीब, मजदूर अर मजबूर रे पख में संवेदनशील कवि रै रूप में प्रकट हुवै। कवि किसान, मल्लाह, महावत, पत्रवाहक, चोर, पासीगर, वेश्या, मरजीवा, बाजीगर, भिखारी, मदारी, लकड़हारा, कसाई आद अभावग्रस्तां रै प्रति पूरी सहानुभूति दरसाइ है। दुरसाजी अेक साधनं सम्पन कवि हा उणारी पूरी उठ बैठ उच्च वर्ग रै सागै ही पण उणा आपरो कविधर्म निर्वहन जिण जागरूकता रै साथै कियो उणसूं तत्कालीन समाज रै दूजै कवियां सूं दुरसाजी रो व्यक्तित्व न्यारो निंगै आवै। 'किरतार बावनी' दुरसाजी री उत्कृष्ट रचना मानी जावै। हरेक छंद में दुखी व्यक्ति रे पेट भरण रा कळाप नें कवि कारुणिक रूप सूं दरसायो है -


'जेठ महीने जोर, तपे तिहं दणियार तातो।
धरती वसदे धखै, महाबळ लुए मातो।
काळा गिरवर कहर, जोई तिहां निरधन जावै।
सिर भातो ले सबळ, धसै धर सांमो जावै।
भार संजोगै भेदियो, भूमि पाव पाछा भरै।
करतार पेट दुभर कियो, सो काम एह मानव करै।


दुरसाजी डिंगळ रै निपुण कवियां में मान्या जावै जिणा दुहा, सोरठा, छप्पय, नीसाणी, झूलणां, भाखड़ी, पंखाळो, पालवणी, गजगत आद छंद-गीतां में रचनावां करी है। अजै तक दुरसाजी री लिखी रचनावां में डिंगळ रै दो छदां में रचनावां मिळी है चाळकनेच रो छंद रोमकंद छंद में अर परमेसरजी नाममाळा भुजंगी छंद में प्रणीत है। दुरसाजी री रचनावां में शब्दालंकार प्रयोग प्रधानता साथै हुयो है। दुरसाजी रै काव्य में डिंगळ काव्य रा उच्च प्रतिमान मिळै। ओज, स्फूर्ति, प्रेरणा, प्रोत्साहन, उद्बोधन, आद रे साथै दुरसाजी री रचनावां रम्य रूप में पाठका अर श्रोतावां रै साम्ही आवै। क्षत्रिय समाज रै वीरोचित कामां सूं दुरसाजी कई सांस्कृतिक मूल्यां नै उद्भासित करिया जिणां में दानवीरता, वचन पालण, शरणागत रक्षा, स्वामीभक्ति, अतिथिसत्कार, प्रतिशोध, जसकामना आद प्रमुख है।
कवि श्रेष्ठ दुरसाजी री बेबाक अभिव्यक्ति रो अनुमान आपां इण बात सूं लगा सकां कै वे अकबर जेड़ै बादशाह नै उण रा हीज दरबार में खड़ा होय'र खरी अर खारी कैवण री हिम्मत राखता - 

अस लेगो अणदाग, पाग लेगो अणनामी।
गो आडा गवड़ाय, जिको बहतो धूरबामी।
नवरोजे नहं गयो, न गो आतसा नवल्ली।
न गो झरोखा हेठ, जेथ दुनियाण दहल्ली।
गहलोत राणं जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी।
नीसांस मूक भरिया नयण, तो म्रित साह प्रतापसी॥

इण भांत दुरसा आढ़ा साचे अरथां में एक राष्ट्र कवि अर उद्भट विद्वान हा। वांरी रचनावां डिंगल अर राजस्थानी साहित्य री थाती है।