कथा अहंमनी
डेल्हजी
कथा अहंमनी -717 छंदा में धनासी, मारू,गवड़ी,धोवळ,सोरठ अर आसाधाहड़ी जैडी़ देशी राग - रागणियां में गाइजण वाळौ ऐक पौराणिक आख्यान काव्य है। आ वर्णन प्रधान रचना है,जिण में संवाद इता सारा हुया है जिणां सूं रचना में रौचकता बण गयी है।राजस्थानी भासा रै मांय आख्यान काव्य परंपरा री सुरूआत इण संतकवि अर पदम भगत सूं ही मान्यौ जा सक है। कथा अहंमनी रै मांय घटना रै हरऐक पात्र रै हिंय मांय लोक सामान्य री धड़कन व्याप्त है। छोटा-मोटा सगळा पात्रां रै चरित्र मांय मानवीय सौहार्द री अद्भुत भावना मिळ है। आ रचना संगीत योजना, नाटकीय तत्वां रै सफल गुंफन अर सहज घरेलू भासा रै सारूं अनुठी चावी -ठावी बणगयी। पाठक अर स्रोतांवां रै बीच में जैडी़ उत्सुकता इण कृति रै प्रसंगां में देखणनै मिळ है,बैड़ी दूजी रचनांवां में कम ही है। उणां बगत री लोक भासा रै साग ही लोक मान्यतावां, विसवास, रीति - रिवाज, प्रचलित रुढ़ि, आशा - आकांक्षां जैड़ा कयी सारा लोक मूल्यां अर परंपरा रौ अनूठौ संगम भी जगचावौ है। 16वीं सदी रै मरू प्रदेशीय समाज रै अध्ययन सारूं आ रचना घणी महताऊ है। श्रृंगार, वीर, करुण अर शांत रस रै मांय निरुपित इण कृति रै संवांदां रै मांय तीन मौड़ देखण नै मिल है - कथा री सुरुआत सूं ले'अर अभिमन्यु रै विवाह तक, उणां रै वीरगति प्राप्त करणै तक अर अर्जुन रै हस्तिनापुर आवण सूं ले'अर आखिर तांई। श्री कृष्ण री केंद्रीय भूमिका इण कृति रै मांय सुरुआत सूं ले'अर आखिर तांई बराबर बणयूड़ी है। कृष्ण चरित रै प्रताप सूं ही रचना अर घटना प्रसंग आगै बढ़ रह्या है।