भट्टारक शुभचन्द्र
भट्टारक विजयकीर्ति रा सिस्य अर मध्यकाल रा विद्वान जैन संत।
भट्टारक विजयकीर्ति रा सिस्य अर मध्यकाल रा विद्वान जैन संत।
भट्टारक विजयकीर्ति रा सिस्य शुभचन्द्र मध्यकाल रा विद्वान जैन संत हा अर वां आपरी विद्वता रै पांण जैन समाज ई नीं बल्कै दूजा धरम रा लोगां सूं ई घणौ आदर हासल कर्यो। शुमचन्द्र भट्टारक विजयकीर्ति रै देवलोक हुयां पछै वां री गादी माथै विराज्या अर आपरै धारमिक उपदेसां सूं लोगां नै अध्यात्म रौ मारग दिखायौ। वां रै जन्म बाबत पुख्ता जाणकारी अजेस नीं मिळी है पण अैड़ो मान्यौ जावै कै वै संवत 1530 सूं 1540 रै बिच्चै किणी बगत मांय जलम्या हा। अै टाबरपणै सूं ई जैन भट्टारकां रै सम्पर्क में आयग्या अर वां मौकळै प्राकृत अर संस्कृति ग्रंथां रौ अध्ययन कर्यो। शुभचन्द्र, भट्टारक री गादी माथै लगैटगै चाळीस बरसां तांई रैया अर इण बगत में वां राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब अर उत्तरप्रदेश मांय जैन धरम रौ सांगोपांग प्रचार कर्यो। वां री वाणी मीठास सूं भर्योड़ी ही अर वै लोगां रौ मन मोवणैं में घणा सफळ रैया। शुभचन्द्र बगत नै बिरथा नीं जावण देंवता अर वै हरमेस ग्रंथां अर रचनावां नै भणनै कै रचाव में लाग्योड़ा रैंवता। वै घणा विद्वान हा अर छः भासावां संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंस, हिंदी, राजस्थानी अर गुजराती भासावां माथै सांगोपांग अधिकार राखता। वां संस्कृत में चौबीस अर राजस्थानी मांय लगैटगै दस रचनावां रौ सिरजण कर्यो। शुभचन्द्र रचित राजस्थानी रचनावां में महावीर छंद, विजयकीर्ति छंद, गुरु छंद. नेमिनाथ छंद, तत्वसार दूहा, दान छंद, अस्टाहियांका गीत, खेतरपाळ गीत अर कैई फुटकर पद सामल है। भट्टारक शुभचन्द्र आपरी विद्वता अर साहित्य साधना सारू जुगां-जुगां तांई आदर साथै याद कर्या जावैला।