भट्टारक सकलकीर्ति
पन्द्रहवै सइकै रा प्रमुख जैन संत।
पन्द्रहवै सइकै रा प्रमुख जैन संत।
भट्टारक सकलकीर्ति पन्द्रहवै सइकै रा प्रमुख जैन संत हा। सकलकीर्ति रो जन्म 1386 ई. में अणहिलपुर पट्टण मांय अेक सम्पन्न परिवार में हुयो। वां रै पिता रौ नांव करमसिंह अर माता रौ नाम नांव शोमा हो। अै हुबड़ जाति रा हा। सकलकीर्ति रौ बाळपणै रौ नांव पूर्णसिंह हो अर अै भणाई में घणा हुस्यार हा। बाळपणै में ई वां मौकळा ग्रंथ कंठस्थ कर लिया अर खुद नै आध्यात्म रै कानी रमाय लियौ। लगेटगै चौदह बरसां री उमर में वां रौ ब्याव करीज्यौ पण वां आपरौ आध्यात्मिक सुभाव नीं बदळ्यो। वां नै माता-पिता अर कुटुम्ब रा लोगां घणी समझावणी दीवी पण वै वैराग रै मारग माथै टिक्या रैया। घणै बगत तांई आ समझावणी चालती रैयी पण वां आपरौ फैसलो नी बदळ्यौ। सेवट आपरी उमर रै छब्बीसवैं बरस में वां घर-परिवार री अकूत सम्पति नै त्याग'नै साधु जीवण अपणाय लीनौ। इण पछै वै नैणवा जाय ने भट्टारक पद्मनंदि रा सिस्य बण्या अर अठै लगैटगै आठ बरसां तांई रैया। इण बगत में वां मौकळा प्राकृत अर संस्कृत ग्रंथां रौ अध्ययन कर्यो अर वां रै मर्म नै समझ्यौ। उमर रै चौतीसवैं बरस में वै आचार्य री पदवी हासल करी अर आचार्य सकलकीर्ति नांव सूं जाणीज्या। वां वागड खेतर रै साथै साथै गुजरात में ई धर्म री प्रचार-प्रसार कर्यो अर मौकळी धारमिक चेतना आम जनता में जगावण रौ मैताऊ काम कर्यो। सकलकीर्ति घणा विद्वान हा अर आपरै उपदेसां रै मारफत जनता नै घणौ प्रभावित कर्यो। वां री विद्वता री घणी बडाई पछै रै जैन भट्टारकां करी है अर वां नै पुराणां अर काव्यां रौ लूंठौ विद्वान मान्यौ। सकलकीर्ति पैंतीस रे लगैटरगै ग्रंथां रौ सिरजण कर्यो जिणमें 28 संस्कृत अर 7 ग्रंथ राजस्थानी में है। राजस्थानी में वां आराधना प्रतिबोधसार, नेमीस्वर गीत, मुक्तावली गीत, णमोकारफळ गीत, सोळह कारण रास, सारसीखामणिरास अर सांतिनाथ फागु आद उल्लेखजोग है। भट्टारक सकलकीर्ति संवत् 1499 में मेहसाणा नगर में देवलोक हुया। आदिकालीन जैन साहित्य में सांतरै सिरजण अर धरम रै प्रचार-प्रसार सारू वां रै योगदान नै घणै आदर साथै याद कर्या जावै।