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भट्टारक रत्नकीर्ति
मध्यकाल रा जैन संत कवि।
मध्यकाल रा जैन संत कवि।
भट्टारक रत्नकीर्ति मध्यकाल रा चावा जैन संत हा अर वां आपरी रचनावां रै मारफत मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य नै घणो सिमरध कर् यौ। रत्नकीर्ति रै पिता रौ नांव हूबड़ वंस रा मानीता घर मांय सेठ देवीदास अर माता सहजलदे रै अठै घोघा नगर में हुयौ। वै टाबरपणै सूं ई भणाई में घणा हुंस्यार हा अर थोड़ै’क बगत मांय वां प्राकृत अर संस्कृत रा कैई ग्रंथां रौ अध्ययन कर लियौ। इणी बगत मांय संजोग सूं वां रौ मेळ भट्टारक अभयानंदि सूं हुयौ अर वै उणा सूं घणा प्रभावित हुया। वां रै गुणां सूं प्रभावित हुय’नै भट्टारक अभयानंदि वां नै आपरौ सिस्य बणाय लियौ अर रत्नकीर्ति वां रै कन्नै रैंवता थकां व्याकरणसास्त्र, संस्कृत ग्रंथां अर धरमसास्त्रां रौ अध्ययन कर् यो। वां रै इण अध्ययन रौ बगत पूरौ हुयां पछै अभयानंदि रत्नकीर्ति नै आपरौ पाटवी थरप दियौ। कैई उल्लेख करीज्यौ है कै रत्नकीर्ति आपरै मोट्यारपणै में घणा फूठरा मोट्यार हा अर साधारण जन वां नै देख’र मुग्ध हुय जांवतो। इणरै पछै वां री वाणी सूं नीसर् या उपदेस घणा असरकारक हुंवता। रत्नकीर्ति रा मौकळा सिस्य हुया अर वां रै पछै धरम प्रचार री बागडोर संभाळी। रत्नकीर्ति रा रच्योड़ा पद घणा लोकचावा है अर सरस भासा रै कारणै वै आज ई लोगां री वाणी माथै बिराजै। सहज-सरस प्रवाह सैली रै कारण रत्नकीर्ति रा पद हरमेस याद राख्या जावैला।