भट्टारक मुनि अभयचन्द्र
मध्यकाल रा जैन संत।
मध्यकाल रा जैन संत।
मध्यकाल रा चावा जैन मुनि अभयचन्द्र रौ जलम संवत 1640 रै लगैटगै हूबड़ वंस में हुयौ। वां रै पिता रौ नांव श्रीपाल अर माता रौ नांव कोडमदे हो। वां नै बाळपणै सूं ई जैन मुनियां री संगत मांय रैवण रौ अवसर मिळ्यौ अर इणरै प्रभाव सूं वां मांय टाबरपणै सूं ई आध्यात्मिक विचार विकसित हुंवता गया। भणाई रै बगत वां मौकळै धारमिक ग्रंथां अर व्याकरण आद रौ गैरो अध्ययन कर् यो अर सांतरै विद्वान रै रूप में ओळखाण बणाई। वै भट्टारक कुमुदचन्द्र रै देवलोक हुयां पछै अभयचन्द्र संवत 1685 में बारडोली गादी रा भट्टारक बण्या अर संवत 1721 तांईं इण गादी माथै रैय’नै धरम रौ सांतरो प्रचार-प्रसार कर् यो । अभयचन्द्र फगत गुजरात खेतर तांईं सीमित नीं रैया बल्कै वै राजस्थान मांय ई मौकळौ विहार कर् यौ। जैन धरम रा प्रचारक हुवण रै साथै वै सांतरा रचनाकार ई हा अर दस रै लगैटगै रचनावां रौ सिरजण कर् यो । अभयचन्द्र री खास-खास रचनावां में वासुपूज्यनी धमाळ, चंदागीत, सूखड़ी, पदमवती गीत, बलभद्र गीत, लक्षण गीत अर कैई फुटकर पद सामल है। वां री रचनावां आकार री दीठ सूं नैनी है पण भावां री दीठ सूं घणी सबळी है। अभयचन्द्र री काव्यभासा सरल राजस्थानी है अर उण माथै गुजराती रौ प्रभाव साव निगै आवै। मध्यकालीन जैन साहित्य मांय मुनि अभयचन्द्र रौ योगदान हरमेस आदर साथै याद कर् यो जावैला।