भट्टारक ज्ञानभूषण
मध्यकालीन जैन संत परम्परा रा कवि।
मध्यकालीन जैन संत परम्परा रा कवि।
मध्यकालीन जैन संत परम्परा में ज्ञानभूषण नांव रा चार संत हुया है। अठै उल्लेखजोग ज्ञानभूषण भट्टारक सफलकीर्ति री सिस्य परम्परा रा भट्टारक भुवनकीर्ति रा सिस्य हा। अै मूळ रूप सूं गुजरात रा रैवासी हा अर गुजरात रै साथै-साथै वां राजस्थान रा सगळा खेतरां में विहार करतां थकां जैन धरम रौ प्रचार-प्रसार कर् यौ। मान्यौ जावै कै ज्ञानभूषण संवत 1531 में सागवाड़ा में भट्टारक री गादी माथै विराज्या। वै घणा विद्वान अध्येता संत हा अर वां मौकळै ग्रंथां रौ अध्ययन कर् यो । धारमिक उपदेस देवण रै साथै-साथै वां साहित्य रौ सांगोपांग सिरजण कर् यो। वां संस्कृत अर प्राकृत ग्रंथां री टीकावां ई सरल भासा में लिखी। ज्ञानभूषण संस्कृत मांय दस रै लगैटगै अर राजस्थानी मांय पांच ग्रंथां रौ सिरजण कर् यो । वां री राजस्थानी रचनावां में आदीश्वर फाग, जळगाळण रास, पोसह रास, षट्कर्म रास अर नागद्रा रास उल्लेखजोग है। ज्ञानभूषण री राजस्थानी रचनावां री भासा-सैली घणी सरल अर सहज है अर पाठक नै इणारा भाव समझण मे दर ई अबखाई नीं आवै। अैड़ा मानीता संत रचनाकार रौ देहांत संवत् 1560 रैलगैटगै हुयौ। भट्टारक ज्ञानभूषण मध्यकाल रा प्रमुख जैन संत हुवण रै साथै सांतरा साहित्यकार रै रूप में सदैव याद कर् या जावै।