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आत्माराम 'रामस्नेही संत'

  • Vagad

रामस्नेही रूपदास जी अवधूत रा सिष्य। गुरु रूपदास जी री जीवनी रा प्रामाणिक व्याख्याकार अर 'मुगति-विलास' ग्रंथ रा सिरजनकर्ता।

आत्माराम 'रामस्नेही संत' रौ परिचय

रामस्नेही संप्रदाय री शाहपुरा (भीलवाड़ा) पीठ रा प्रमुख संत रूपदास जी अवधूत रा पाटवी सिष्य आत्माराम जी एक पूग्योड़ा महापुरुष एवं ऊंचै दरजै रा संत महात्मा हा। आप छैत्र री भोळी-भाळी जनता नें लोकभासा में धर्म रै मर्म री बात समझाय'र समाज ने एक सूत्र में पिरोवण रौ काम कियौ। संत आत्माराम जी हिंदू-मुसलमान, जैन-वैष्णव, द्विज-शूद्र, सगुण-निर्गुण, भक्ति अर योग जेड़ै द्वंद नें मेट'र एक ऐड़ै समन्वित, सरल मिनख धर्म री प्रतिष्ठापना करी जो कै समूचै समाज खातिर हितकर अर सुग्राह्य है। मानवीय मूल्यां सूं  सम्पन्न इण 'रामस्नेही संप्रदाय' री शाहपुरा पीठ आपरी संत परम्परा में गुरु भगति जैडा़ मूल्यां ने विशेष मैतव प्रदान कियौ है। रामस्नेही संत आत्मारामजी महाराज गुरु भगति रै साथ ही सांसारिक आवागमण सूं मानखो किण तरै मुगति पा सके, इण प्रसंग नै लेय'र भी आपरी लेखणी चलाई है।
वां री रचनावां रै मार्फ़त दिरिज्योड़ा प्रमुख उपदेश है- आदमी ने आपरी पांचों इंद्रियों अर मन ने वश में करतां थकां माया-मोह जैड़ी वासनावां नै रोकण रौ जतन करणौ चाहिजै। ज्ञान री प्राप्ति सारूं गुरुजनां री सरण जरूरी है। समर्थ गुरु रै बिना जीवन में सबकुछ असंभव है। समर्थ गुरु री शरण में जाय'र ही आदमी आपरै हिरदै सूं अज्ञान रूपी अंधेरे नै दूर भगाय'र ज्ञान रो उजाळौ कर सके। गुरु रै मार्गदर्शण में ही साधना करण सूं भगवान री प्राप्ति संभव हो सके। आत्माराम जी शाहपुरा पीठ रा पहला अर प्रधान गदीपति गुरु रामचरण जी महाराज नें आपरा साचा सतगुरु मानतां थकां उणां री कृपा अर महिमा रौ बखाण कई देशी राग-रागिणियां में कियौ है। वै फरमायौ कै राम नाम रूपी इमरत रौ प्यालो पीया बिना इण भवजल सूं पार उतरणौ अबखौ है। गुरु री किरपा सूं ही शील, संतोष, दया, धरम अर धीरज नै हिरदै में धारण कियौ जा सकै। मिनख ने कुसंगत कदै ई नीं करणै री सलाह देवतां थकां आप बतायौ है कै जिका लोग आपरै मुंडै साम्ही मीठा बोलै, आपरी बड़ाई अर दूजां री निंदा करै, ऐड़ा चुगलखोर अर चापलूस निंदक लोगां रौ कदैई साथ नी करणौ चाहिजे। मिनख नै हमेशा आपरै हिरदै मांय विराज्योड़ै परमात्मा नै खोजणै रौ प्रयास करणौ चाहिजे।
सांसारिक संबंधों अर नाता-रिश्तेदारां सूं हमेशा हिलमिल रैवणौ। गृहस्थ धरम रौ पालण करण वाला लोगां नै सदैव आपरै माता-पिता री आज्ञा रौ पालण करतां थकां उणां री सेवा चाकरी करणी चाहिजे। सगळा सुखां री खाण उणां रै चरणां में है। 
आत्माराम जी गुरु रूपनाथजी री जीवनी रा प्रामाणिक व्याख्याकार व 'मुगति-विलास' नांव रा ग्रंथ रा रचनाकार रै रूप में भी ओळखीजै।