यूं मन मिरतग व्है रहै तौ मारै नाहीं।

माया मैं न्यारा रहै, जिव जगपति माहीं॥

ज्यूं मुरदा अरथी पड़्या, बरतणि बहु बाणी।

औरौं की भांवरि भई, उन कछु जाणी॥

निहकामी न्यारा रहै, प्रतिमा परि खेलै।

बरतणि बरतै बिगति सों, उर आप मेलै॥

बाजीगर की पूतली, बाजीगर हाथैं।

रज्जब राखै त्यूं रहै, नहीं औगुण साथैं॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम