सूता सारंगधर जोग में रे जोगिया, क्यों कर सारंग जमाय॥टेर॥
सारँग लखे सारँग पियाँ रे जोगिया, रहूँ नित सारँग माँय।
मीठी रँग आ सारँगी रे जोगिया, मो मन घणी सुहाय॥
पाँच प्राण पाचूँ कोश है जोगिया, इन्द्री दश के लार।
एक मन दूज बुद्धि बसे रे जोगिया, ए तार बाईस सुणाय॥
उत्तम मध्यम कनिष्ठ है रे जोगिया, है तीनूँ ही ग्राम।
सातूं भोम सो सप्त सुर रे जोगिया, जिण पर लियो मैं विश्राम॥
आवत जावत रो गज कियो रे जोगिया स्वासो ही स्वास चलाय।
ओहँ सोहँ री रागणी रे जोगिया, सुणियाँ मन स्थिर हो जाय॥
सारँगधर सारंगी बजे रे जोगिया, इण सारङ्ग लियो बुलाय।
सारंग ताणने मारियो रे जोगिया, सारँग प्राण गमाय॥
सारँग मर शाह रंग भई रे जोगिया, अब सारंग मिलियो आय।
मानसिंह शाहरंग चढ्यो रे जोगिया, अब दूजो चढ़सी नाँय॥