सूषिम सेव सरीर मैं कोई गुरमुखि जाणै।

मन मिरतग तन पैठि करि, पति पूजा ठाणै॥

पच्छिम पाट कहु को रचै, सति सेवा साजै।

बिबिध भांति बहु बंदगी, बिचि ब्रह्मा बिराजै॥

सांच सील जल सापड़ै, सुचि संजम सांचा।

ब्रत उनमनि अहि निसा, मन मनसा बांचा॥

पाती पंच चढ़ाइ लै, सत सुकृत सुगंधा।

धूप ध्यान ग्यानै दिया, यहु आरंभ धंधा॥

घंटा घट रट राम की, ताली तत ताला।

बाणी बेण मृदंग मत, सब सबद रसाला॥

सरबस ले आगे धरै, भजि भोग सो लागै।

जुगि जुगि जगपति आरती, जिव जूठणि मांगै॥

दीन लीन सांचै मतै, डर के डंडौता।

भयभीत भयानक भगत सों, निरगुण न्यौता॥

सारी सेव सरीर मैं, सब करै बखाना।

रज्जब राम रजाइ यूं, जन जोति समाना॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम