समझ सठ आतम ज्ञान अज्ञानी।

मायावादी गूढ़ मसकरा, मूढ़ महा अभिमानी॥

काळी कांणी कोझी कांमण, अपणीं परणीं आछी।

अबछर आभ अवर अरधंगा, पदमण धरिये पाछी॥

तीन दिनां सूं साक मिळै तोई, धोखो हियै धारो।

सूंक लेर पधरावै सीरो, नहिं नीको निरधारो॥

साच बोलियां टुकड़ा सूका, मिळ जावै सोइ मीठा।

कूड़ बोल पकवांन करावै, धूड़ बराबर धीठा॥

हाथ कमाई घाठ हरक सूं, पतळी गट गट पीणीं।

घोर रेत सम चेत घमण्डी, चोर लियोड़ी चीणीं॥

अंग दया घर घोर अंधारो, पूनम सी छबि पावै।

दयाहींण घर दीन दिवाळी, काळी रात कहावै॥

बिसन बिनां दस बीस वरस बिच, मरणौ सुर्ग सिधाणौ।

विसनी नर सौ वरस जिये वपु, पूगै नरक पयाणौ॥

सुकृत लगन स्वाधीन सदाई, सदा मगन सुख रासी।

सनमुख सम्पत लगत अग्नि सी, पराधीन दुख पासी॥

विभचारी बैरी बद वंचक, छळ बळ कपटी छांनो।

महामोह हिंसक मूरख सूं, मरणौ उत्तम मांनो॥

कामी क्रोधी कृपण कळंकी, कुटिल कजाक कसाई।

चोर चुगल चालाक चतुर सूं, भोळो आछौ भाई॥

ऊंच नींच अन्तर नहिं अेको, राम भजे सोइ रूड़ो।

परमेश्वर नै नहीं पिछाणें, चार बरण में चूड़ो॥

आतम अन्तर सार अहरनिस, तार निरन्तर तोफा।

पांणी पाहण में परमातम, बाहर ढूंढत बोफा॥

जोग जुगत जगदीश्वर जपणां, अपणां जन्म उधारै।

ऊमरदांन अनूपम आशय, बिरळा बात बिचारै॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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