संतो लखन बिहूंनी नारी।

अंग एकहू स्याबति नाहीं, कंत रिझायौ भारी॥टेक

अन्धली आंखिन काजल कीया मुंडली मांग संवारै।

बूची काननि कुंडल पहिरै नकटी बेसरि धारै॥

कंठ बिहूंनी माला पहिरै कर बिन चूडा सोहै।

पाइ बिहूंनी पहरि घूंघरूं पति अपनै कौं मोहै॥

स्रोत
  • पोथी : सुंदर ग्रंथावली ,
  • सिरजक : सुंदरदास जी ,
  • संपादक : रमेशचन्द्र मिश्र ,
  • प्रकाशक : किताबघर, दरियागंज नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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