संतौ देख्या अद्भुत खेला।
मच्छी मध्य समंद समाणा, अजा स्यंध सौं मेला॥
आदित माहिं अकासहु दीप्या, सीप समानी मोती।
ऐसी हुई कही को समझ, दीसै सो अण होती॥
आभू बूंद असम सो बरसै, तीर कमाण चलावै।
चीटी माहिं चकहु सौं पैठी, ढूंढ़्यो हाथि न आवै॥
परवत उड़ी पंखि थिर बैठी, राहु केत सिंघ खाये।
जन रज्जब जगपति कै मारग, पंगुल परि चढ़ि धाये॥