संतौ यहु गति बिरला बूझै।

गुरुप्रसाद होइ यहु जाके, ताही कूं यहु सूझै॥

आंधी अनंत दीपनै दाबी, दीवा बुझि नहिं जाई।

जाकै द्वार दीप था ऐसा, तिनि यहु कीरति गाई॥

सलिता सकल समंद सो पैठी, कंवल कोस मैं आई।

ऐसा एक अचंभा देख्या, नदी कंवल मैं न्हाई॥

पृथ्वी सकल प्रजा पुनि सारी, ले आकास बसाई।

जन रज्जब जगपति की किरपा, घरि घरि होहिं बधाई॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम