संतौ यहु गति उलटी जाणी।

मूरति माहि देहुरा आया, सुणि सतगुर की बाणी॥

बीरज माहै बृच्छ समाणा, हांडी कण मैं पाकी।

कूवां भरै कुंभ में पाणी, कहत आवै ताकी॥

ब्रह्मा बूंद में घटा समाणी, बाइ बीजुली सेती।

अवनि अकास गए ताही मैं, चपल चात्रिगहिं लेती॥

आखिर माहै पोथी बैठी, बंचक बीज बिलाना।

जन रज्जब यहु अगम अगोचर, गुरमुखि मारग जाना॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम