संतौ मीन गगन में गरज्यो।

निरमल ठौर निसाण बजायो, सौ जलनिधि सौ भाज्यो॥

चकवा चकवी रैनि मिले हैं, चात्रिग चिता समाना।

माखी सौ मकड़ी मिलि बैठी, पीवै अमृत पाना॥

परवत ऊपरि पहुप प्रकासौ, बोला अब निज माया।

आंभौं ऊसणि तिणुका ऊग्या, गुरुमुखि सो नरताया॥

दादुर षियो दामिनी सूती, सुणि सतगुर की बाणी।

जन रज्जब यहु उलटी रचना, बिरलै पुरषौ जाणी॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम