संतौ मनमोहन मिलि नावै।

ज्यूं बिलै बधूला आंधी माहीं, निकसि भरमण पावै॥

ज्यूं बृछ बीज परसि बपु बहनि, बसुधा माहिं समावै।

उदै अंकूर कौन बिधि ताको, कैसे अंग दिखावै॥

स्वाति बूंद जो सीप समानी, सो फिरि गगन आवै।

अलि चलि कंवल केतगी बींधै, आन पहुप नहिं भावै॥

अम्मलबेत सुई जो पैठी, सो बागे सिवावै।

रज्जब रहैं राम मैं मन यूं, समरथ ठौर सुभावै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम