संतौ बाट बटाऊ माहीं, सो आपण समझै नाहीं।

बिरला गुरमुखि पावै, सो फिरि बहुरि आवै॥

मति मारग मैं गवना, तहं नाहीं तीन्यूं भवना।

ओं ओंकार अकेला, सो आपु आपु मैं खेला॥

सेरी समझि सयाना, यहु आतम अगम पयाना।

यूं चलि चौथे आवै, सो परमपुरिष को पावै॥

तहां पंथ पथिक पति येकै, यहि रमिबै रंग बमेकै।

जन रज्जब रह पाई, सो आसण करै भाई॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम