सखी! मेरी नींद नसानी

पिय को पंथ निहारत, सिगरी रैण विहानी

सव सखियन मिलि सीख दयी, मन अेक मानी

विन देख्यां कल नाहिं परत, जिय अैसी ठानी

अंग-अंग व्याकुल भयी, मुख पिय-पिय वानी

अंतर वेदन विरह की, वह पीड़ जानी

ज्यूं चातक घन कूं रटै, मछरी जिमि पानी

मीरां व्याकुल विरहणी, सुध-बुध विसरानी

स्रोत
  • पोथी : मीरां मुक्तावली ,
  • सिरजक : मीरांबाई ,
  • संपादक : नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम