सकल कहावै सूरवां मोहन घर के माहिं।

रण माहिं सनमुख रूपै ऐसा कोई नाहिं।

रण माहिं सनमुख रूपै ऐसा कोई थेक।

करै बडाई घरौं मै ऐसे बहुत अनैक।

अपनै मुख सै आपकी करै बडाई नाहिं।

वो खांडा भी बहि है सूर वीर रण माहिं।

कायर बडाई भी करै सूरा देह दिखाय।

कायर भाग पीठ दै सूरा सनमुख खाय॥

स्रोत
  • पोथी : संत कवि मोहनदास की वाणी और विचारों का अध्ययन ,
  • सिरजक : डाॅली प्रजापत ,
  • प्रकाशक : हिंदी विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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