रे प्राणी यहु खेलि सिकार रे।
बन बप ढूंढ़ि स्यावजहु मार रे॥
मन मृग मारि तीस तहिं लार रे, चेतनि चीता त्याहिं परि डार रे।
गुण गण हंसती अनल अहार रे, तृष्णा तीतर बाज बिचार रे॥
केसरि काम अधिक अधिकार रे, सारदूल सुमिरन मुखि जार रे।
या आयुध सुणि समझि खिलार रे, जन रज्जब सुनि हो उठि पार रे॥