रे मन सूर संत क्यूं भाजै।

मुहमिल भयूं मरण जे डरपै, तौ दुहूं पांवड़ा लाजै॥

उलट्यूं उजह कहौ क्यूं पावै, जब लग दलहिं भाजै।

मरतौं मानि जीवतौं जाहिर, जनम मरण अघ मांजै॥

जे सेवग संकट सों डरपै, तवै स्वांग कहां छाजै।

देइ उठाय फौज मैं आपै, तब सब बीर बिराजै॥

अरि दल जीति सकल सिर ऊपरि, सूर ससि तारे गाजै।

रज्जब रोपि रह्याऊं रण मांहैं, नांव नगारा बाजै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम