सोवंन लंक खळोकरि गाहि, ढंढोळयौ असमांनौ।
कहि मेहा रिण झूझ्यौ राघौ,घणं ज्यौ बूठा बांणौ॥
राम -रावण जुध रौ वर्णन करतां थकां कवि कैवै है कि रामजी ऐड़ौ अनूठौ जुध कियौ जिण में सोनै री लंका न खळौ कर गाह दीवी।जमीन सूं आसमान तक लंका न छाण-टंटोळ 'अर मेह री झड़ी ज्यूं बाणां री झड़ी लगा दी।