प्रीति गुर गोबिंद सौं ऐसी बिधि कीजै।

आदि अंत मधि एक रस जुगि जुगि सुख लीजै॥

प्यंड प्रान न्यारे भये सो नेह नासै।

बेलि कली ज्यूं जाइ की टूट्यूं परगासै॥

ज्यूं हणवंत हित जत सौं जड़्या सदा सो सांचा।

हांक सुनत नर हींज व्है अजहुं फुर बांचा॥

ज्यूं दृढ़ डोरी गुण आत्मा जीवत मृत पासा।

गुरु गोबिन्द सौं सूत्र यूं सुणि रज्जब दासा॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम