म्हारौ मंदिर सूनौ राम बिन, बिरहनि नींद आवै रे।

परउपगारी ना मिलै कोई, गोबिंद आनि मिलावै रे॥

चेती बिरह निच्यंत भागै, अबिनासी नहिं पावै रे।

इहि बियोग जागै निस वासर, बिरहा बहुत सतावै रे॥

बिरह बिजोग बिरहिनी बेधी, घर बन कछु सुहावै रे।

दह दिसि देखि भयो चित चक्रित, कौण दसा दरसावै रे॥

ऐसा सोच पड़्या मन माहीं, समझि समझि धूधावै रे।

बिरह बाण घट अंतरि लागे, घाइल ज्यूं घूमावै रे॥

बिरह लाइ तन पंजर छीना, पीव को कौन सुनावै रे।

जन रज्जब जगदीस मिले बिन, पल पल बज्र बिहावै रे॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम