मालिक मिहरि करी भरपूरि।
काफिरा करि कतल केसौ, दूंदरा दिल दूरि॥
रहम मैं रिप खलक खालिक, गरब गंजन सूरि।
इह तलब तालिब पुकारै, राखु नांव हजूरि॥
जानि राइ जाहिर तुझी मैं, नाहिं कोई दूरि।
बीच ही बटमार कैसे रहे मारग पूरि॥
फरजंद की फिरियाद फारिक, नफसरा करि चूरि।
रज्जबा अरवाहि आतुर, रहौ मिलि मासूरि॥