लंक विळूधा बांदरा, चंदण काळा नाग।
कापड़ चोपड़ लूटियै, लीजै घोड़ा गाय॥
मारयो दोढ़ो भाभरौ, वळया नीसाणे घाव।
जो झड़ झालै बांदरां, सोई बतावौ राव॥
लछमण राम पधारिया, पदम अठारा साथ।
लंका लेसी लाखणौ, जगजीवण रै साथ॥
मारयो दोढ़ो भाभरौ, दोढ़िये हुवौ संगराम।
रावण सीता मांगियै, आया लछमण राम॥
बादळ दी वरसणां, गहरी सुणीयै गाज।
देव दांनौ जुध मांडियो, कूंण छुडावै आज॥
सूर विढै अंग पालटै, भूरा दीसै भूप।
पडनाळे पांणी बहै, राता रूप सरूप॥
चौपड़ि मांडी चौहटै, छिन मां लीवी उतारि।
श्री राम रै बाण सूं, कुंभकरण री हारि॥
मुगट पड्यौ महि ऊपरै, निरखे पड्यौ निहाव।
राणै रावण सांभळयौ, श्री राम रो घाव॥
धोरी धणष चहोड़ियो, कंवर सझ्यौ कोवंड।
तांण्यौ तीर सभाव सूं, निज कांप्या नवखंड॥
लछमण बाण संजोवियो, ताण्य र हुवौ तियार।
बोली मुंध मंदोदरी, दहसिर थारी वार॥
दहसिर दोड़ा मेल्हिया, पुळि आया परधान।
दया करो थे देवजी, करता सांभळ कांन्य॥
कुंभकरण अर भाभरो, महरावंण को दुख।
जां घरि किसा वधावणां, जां घरि किसौ सुख॥
धोरी धणष चहोड़ियौ, करि पंखाळ सूं प्रीति।
मारयो भुंवर भंणकतो, छूटि गई रस रीति॥
दससिर माथा खड़हड़या, मार् यो भुंवर वकारि।
भीत ढ़ही सूं कांगरा, बोई लंक कंवारि॥
सत सीता जत लखमणां सबळाई हंणवंत।
जे आ सीत न जावही, औ गुण मांहि गळंत॥
गहली मुध मंदोवरी, काचै रूही न संध।
कोपिय लाखंण छेदिया, वळै न चड़िस्यै कंध॥
गहली मुंध मंदोवरी, रूही न छाले हाथ।
कोपिय लाखंण छेदिया, तिहुं लोकां रे नाथ॥
नदरि पयाळ अकास सिर, रिव किरण्यां को वास।
हीरै हीरो वेधियो, नरपति कियो नेसास॥
लंक नगर को लोक सोह, थारै दरसंण्य आयो देव।
मदसूदन सांसौ मिटै, करणी दाखवि देव॥