लखो निज श्याम ने रे जोगिया, जद सरसी थारो काज॥टेर॥

सत रङ्ग लेवो माँयलो रे जोगिया, तज दो उपरला साज।

काम उपरला नहीं आवसी रे जोगिया, बिगड़ जाय निज राज॥

जोग फकीरी तो झीणी घणी रे जोगिया, क्या कहूँ कही जाय।

महा बारीक सूक्ष्म अति रे जोगिया, कहन कथन में नहीं आय॥

जोग जुगति कछु ओर है रे जोगिया, बहुत पर की बात।

बड़ा बड़ा गिर पड़्या रे जोगिया, औरों री कोण चलात॥

पाँच पचीसों मारलो रे जोगिया, सहज ही जुड़े समाध।

मन ने पलट निज मन करो रे जोगिया, जद निज आनन्द आत॥

देवनाथ गुरु पूरा मिल्या रे जोगिया, दियो सब भरम मिटाय।

मान फकीरी असल करे रे जोगिया, नकल में ध्यान मत लाय॥

स्रोत
  • पोथी : मान पद्य संग्रह ,
  • सिरजक : राजा मानसिंह ,
  • संपादक : रामगोपाल मोहता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : 6
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