जोगी रे तू जुगत पिछांणी, काजी रे तू कलम कुरांणी।
गऊ विणासो काहे तानी, राम रजा क्यों दीन्ही दानी।
कान्ह चराई रनये वानी, निरगुण रूप हमें पतियानी।
थल शिर रह्यो अगोचर बानी, ध्याय रे मुंडिया पर दानी।
फीटा रे अणहोता तानी, अल्हा लेखो लेसी जानी॥
हे योगी! तू योग की युक्ति जान, अरे काजी। तू कुरान के कलमों को पहचान। तुम किसलिए गोवध करते हो? कौनसे भगवान ने तुम्हें इसकी दी है?
श्रीकृष्ण ने जंगल में उन गऊओं को चराया था। श्रीकृष्ण के उस निर्गुण रूप पर हमें विश्वास है जिसको आंखों से देखा नहीं जा सकता और वाणी से जिसका रूप वर्णन नहीं किया जा सकता, वही परमात्मा धरती पर स्थित है, अरे मुण्डित साधु उसका ध्यान कर। अरे! वे धिक्कारने योग्य है जिन्होंने अनहोनी बात की। यह निश्चय समझो अल्लाह उनसे हिसाब मांगेगा।