काल करम बसि को नहीं, कहु काहि बताऊं।
जे आये ते सब गये, खुर खोज न पाऊं॥
ब्रह्मा विष्न महेस सेस सब, मीच मझारा।
केई चलि केई चालसी, यहु एक बिचारा॥
चंद सूर पाणी पवन, धरती आकासा।
षट दरसन अरु खलक सौं, सब सुनिये बासा॥
अंतक मुखि आकार सब, येऊ भोला नाहीं।
जन रज्जब जगदीस भजि, जग जाते माहीं॥