जोगिया री प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मुळ

हिलमिल वात वणावत मीठी, पाछै जावत भूल

तोड़त जेज करत नहिं सजनी जैसे चंपेली के फूल

मीरां कहै प्रभु तुमरे दरस विन लगत हिवड़ा में सूल

स्रोत
  • पोथी : मीरां मुक्तावली ,
  • सिरजक : मीरांबाई ,
  • संपादक : नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम